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समास ८] श्रवण-महिमा । १६७ है और उससे साधक को 'वस्तु' का ज्ञान होता है ॥ ११ ॥ श्रवण से लवुद्धि श्राती है। विवेक जगता है और मन भगवान् में लगता है ॥ १२ ॥ श्रवण से कुसंग छूटता है, काम-वासनाएं क्षीण होती हैं और भव-भय का नाश होता है॥१३॥श्रवण से मोह का नाश होता है; स्फूर्ति का प्रकाश होता है और निश्चयात्मक सद्वस्तु का भास होता है ॥ १४ ॥ श्रवण से उत्तम गति होती है, शान्ति मिलती है और निवृत्ति तथा अचलपद प्राप्त होता है ॥ १५॥ श्रवण के समान और कोई उत्तम साधन नहीं है। क्योंकि उससे सब कुछ हो सकता है । भवनदी से पार होने के लिए श्रवण ही नौका है ॥ १६ ॥ श्रवण, भजन का प्रारम्भ है; इसीसे सब बातें प्रारम्भ, और पूर्ण, होती हैं ॥ १७ ॥ यह तो सब को प्रत्यक्ष मालम ही है कि प्रवृत्ति-मार्ग हो अथवा निवृत्ति मार्ग हो-श्रवण के बिना किसीकी प्राप्ति नहीं होती ॥ १८॥ यह भी सब लोग जानते हैं कि सुने विना मालूम नहीं होता; . इस कारण पहले श्रवण ही मुख्य प्रयत्न है ॥ १६ ॥ जो बात कभी सुनी ही नहीं है उसका निश्चय कैसे हो सकता है ? अतपच श्रवण (सुनने) के समान और कोई साधन नहीं है-इसके विना काम नहीं चल सकता ॥ २०-२१ ॥ जब सूर्य अदृश्य हो जाता है तब सर्वत्र अंधकार छा जाता है। श्रवण के बिना भी यही हाल होता है ॥ २२॥ नवधा भक्ति, चतु- विधा मुक्ति और सहजस्थिति इत्यादि, किसीके विषय में सी, श्रवण के बिना, कुछ ज्ञान नहीं होता ॥ २३ ॥ विधियुक्त पट्कर्म का आचरण, पुरश्चरण और उपासना कैसी होती है, सो कुछ भी, श्रवण के बिना, नहीं मालूम होता ॥ २४ ॥ नाना प्रकार के व्रत, दान, तप, साधन, योग, तीर्थाटन श्रवण के विना नहीं जाने जाते ॥२५॥ अनेक प्रकार की विद्या, पिंडज्ञान, अनेक तत्वों की खोज, नाना कला और ब्रह्मज्ञान श्रवण बिना नहीं मालूम होते ॥ २६ ॥ जिस प्रकार अनन्त वनस्पतियां एक ही जल से बढ़ती हैं, और एक ही रस से सब जीवों की उत्पत्ति है, तथा जैसे सम्पूर्ण जीव, एक ही पृथ्वी, एक ही सूर्य और एक ही वायु से सधे हैं; और जिस प्रकार सब जीवों के आस-पास आकाश एक ही है तथा, जैसे सम्पूर्ण जीव एक ही परब्रह्म में बसते हैं, उसी प्रकार प्राणिमात्र के लिए श्रवण ही एक अच्छा साधन है ॥ २७-३० ॥ भूमंडल में असंख्यों देश, भाषा और मत हैं उन सब के लिए, श्रवण को छोड़ कर, कोई दूसरा साधन ही नहीं है ॥ ३१ ॥ श्रवण से उपरति होती है। लोग बद्ध से मुमुक्षु बनते हैं और सुसुंच से साधक बन कर बहुत नियम से साधत