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१८८ दासबोध। [ दशक ७ श्रोता यह बिनती करता है कि, मैं अखंड ब्रह्माकार तो होता नहीं हूं और इधर गृहस्थी में भी विघ्न आता है; अतएव, अब कैसे रहना चाहिए? ॥ १६ ॥ अव इसका उत्तर सावधान होकर सुनिये:-॥१७॥ वका, उलटे, श्रोता से प्रश्न करता है:-क्या जो ज्ञानी ब्रह्म होकर, जड़ की तरह, विना कर्म किये, पड़े रहते हैं वहीं मोक्ष पाते हैं; और व्यास श्रादि, जो कर्मयोगी थे, वे क्या डूब गये? ॥ १८ ॥ वक्ता के इस प्रश्न पर श्रोता यह निवेदन करता है कि:-" श्रुति कहती है कि शुक और वामदेव, केवल दो ही, अभी तक सुक्त हुए हैं ॥ १६ ॥ वेद ने उता दो ही ज्ञानियों को मुक माना है, अन्य सव ज्ञानियों को उसने वद्ध बना दिया है! अब वेद- वचन में अश्रद्धा कैसे की जा सकती है ? " ॥२०॥ इस प्रकार, श्रोता ने, ' वेद के आधार से, प्रत्युत्तर दिया और बड़े अाग्रह से दो ही को सुर सिद्ध किया ! ॥ २१ ॥ इस पर वक्ता कहता है:-यदि ऐसा कहा जाय कि सृष्टि भर में दो ही मुन्ना हैं तो फिर औरों के लिए कहां ठिकाना है ? ॥ २२ ॥ बहुत से ऋषि, मुन्दि, सिद्ध, योगी, आत्मज्ञानी और असंख्यों समाधानी होगये:-॥ २३ ॥ महादनारदपराशरपुंडरीक- व्यासांवरीपशुशौनकभीष्मदाल्भ्यान् । रुक्मांगदार्जुनबलिष्ठविभीपणादीन् पुण्यालियापरमभागवतास्मरामि ॥ १ ॥ कविहरिरंतरिक्षः प्रबुद्धः पिप्पलायनः । आविर्होत्रोऽथगुमिलश्चमसः करभाजनः ॥ २ ॥ इनके अतिरिक्त और बड़े बड़े ब्रह्मा, विष्णु, महेश, श्रादि देवर्षि तथा विदेह (जनक) आदि राजर्पि भी होगये ॥ २४ ॥ यदि केवल शुकदेव और वामदेव ही मुक्त हुए तो ब्ल्या वाकी ये सब व गये?यह तो मूर्खता का कथन हुआ ! ॥ २५ ॥ इस पर श्रोता कहता है:-" तो फिर वेद यह क्यों कहता है ? क्या वेद आप मिथ्या कर सकते हैं ?" ॥२६॥ वता उत्तर देता हैः-वेदने यह पूर्वपक्ष कहा है; यह कुछ उसका सिद्धान्त नहीं है; परन्तु सूर्ख लोग उसीको पकड़े बैठे रहते हैं और साधु, विद्वान् तथा दक्ष पुरुष उस बात को नहीं मानते ॥ २७ ॥ तथापि, यह यदि, थोड़ी देर के लिए, मान भी लिया जाय तो फिर वेदों का सामर्थ्य कहां रहा? फिर तो यह सिद्ध होता है कि वेद किसीका उद्धार ही