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समास १० 3 अनुभव अकयनीय है। माम हुन्मा है, (परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है ) इसका तो अर्थ यह है किमी तेरी ब्रान्ति मिटी ही नहीं! ॥ ५५ ॥ अरे भाई ! अनुभव में अनु भत्र इब जाना और अनुभव विना अनुभव थाना भी, वास्तव में, स्वप्न से जगना नहीं है ॥ ५६ ॥ क्योंकि जगने पर भी तृ कहता है कि "अजन्मा मैं ही हूँ" इससे जान पड़ता है कि तेरे स्वप्नरूपी संसार की लहर अभी नहीं गई है ॥ ५७ ॥ जैसे स्वप्न में जागृतावस्था मालूम होती है, बने हो तुझे मालूम होता है कि मुझे अनुभव प्राप्त हो गया है; परन्तु सचमुच बह स्वप्न ही है-और भ्रमरूप है! ॥ ५ ॥ जागृति तो इसके बहुत भागे है-वह बतलाई ही कैसे जा सकती है ? व तो विवेक की धारणा ही दृट जाती है ! ॥ ५६ ॥ अस्तु । वह ऐसा समाधान है कि जो बतलाया ही नहीं जा सकता-अकयनीय है-यही निःशब्द की पहचान है ॥ १०॥ यह सुन कर शिष्य उस अकथनीय अनुभव को समझा गया।॥१॥