यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

समास ६] सत्य देव का निरूपण । अपनी विभूति कहते हैं ) शस्त्र से कट सकता है: अग्नि से जल सकता है और जल से भीग सकता है, तथा नाशवान भी है ॥ २१ ॥ अव श्री ऋता ही के उपर्युक्त दोनों परस्पर-विरोधी वचनों का ऐक्य कैसे हो ? इसका मर्म सद्गुरु के मुख से ही मालूम हो सकता है ॥ २२ ॥ श्रीकृष्ण कहते हैं:-" इन्द्रियाणां मनश्वास्मि"- इन्द्रियों में मन 'मैं' हूं. तो फिर चञ्चल मन की लहर क्यों रोकी जाय ? ॥ २३ ॥ नब प्रश्न यह है कि, तो फिर श्रीकृष्ण ने ऐसा क्यों कहा? इसका उत्तर यह है कि, जिस प्रकार कंकड़, आदि रख कर अबोध बालकों को "ॐ नमः सिद्धम् " सिखलाया जाता है उसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण ने अवोध साधकों को गीता-द्वारा साधन-मार्ग बतलाया है ॥ २४ ॥ यह सब वाक्य-भेद वह 'गोविन्द' जानता है। उसके तेरा यह देहाभिमानी विवाद नहीं चल सकता ॥ २५ ॥ उमा प्रकार के वाक्य-भेद, गीता ही में नहीं, किन्तु वेद, शास्त्र, श्रुति, स्मृति, आदि सभी ग्रन्थों में पाये जाते हैं परन्तु उनका निर्णय सद्गुरु के वचनों से ही हो सकता है ॥ २६ ॥ वेद-शास्त्रों का झगड़ा व्युत्पन्नता से कौन तोड़ सकता है। साधु के बिना वह कल्पान्त में भी नहीं निपट सकता ॥ २७ ॥ शास्त्रों में पूर्वपक्ष और सिद्धान्त का सिर्फ संकेत-मात्र कहा हुश्रा है-उसका पूरा पूरा विवरण साधुओं के ही मुख से हो सकता है ॥२८॥ यों तो वेदशास्त्रों में, एक से एक बढ़ कर,अनेक वाद-विवाद के प्रश्न पड़े हुए हैं ॥ २६ ॥ परन्तु हमें, वादविवाद छोड़ कर, ज्ञान प्राप्त करना चाहिए । इसीसे स्वानुभव होकर ब्रह्मानन्द प्राप्त होता है ॥ ३० ॥ एक ही कल्पना के पेट में जब अनंत सृष्टियां होती जाती है तब उसकी बात सच कैसे मानी जाय ? ॥ ३१ ॥ भक्त लोग कल्पना से कोई देवता मान लेते हैं और उसीमें दृढ़ भक्ति रखते हैं, परन्तु यदि उस देवता की कुछ हानि हो जाती है तो भक भी उसके दुःन से दुःखित होते हैं! ॥ ३२ ॥ कोई कोई पत्थर का देवता बनाते हैं; और एक दिन, उसके फूट जाने पर, दुखी होते हैं-रोते हैं, गिरते हैं, चिल्लाते हैं ! ॥३३॥ कोई देवता घर में ही खो जाता है; किसीको चोर उठा ले जाते है और किसी देवता की मूर्ति को दुराचारी लोग, बलात्कार से,

  • रामदास स्वामी के इस उदाहरण से जान पड़ता है कि, शिक्षा की वर्तमान किंडरगार्टन

प्रणाली, (चालोद्यान-शिक्षण-पद्धति) जिसे लोग अँगरेजों की निकाली हुई समझते हैं, हमारे देश में पहले प्रचलित थी । हमारे पूर्वज प्राचीन आर्य नैसर्गिक साधनों से शिक्षा देना अच्छी तरह जानते थे।