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समास १] परमात्मा की पहचान । कर्ता है वही बड़ा है-उस परमेश्वर को नाना यत्नों से पहचानना चा- हिए ॥ १२ ॥ जब तक वह परमात्मा प्राप्त नहीं होता तब तक यमयातना नहीं जाती। उस ब्रह्मांडनायक की भेट न होना, अपने हक में अच्छा नहीं है ! ॥ १३ ॥ सब को जिसने पैदा किया है-जिसने तमाम ब्रह्मांड की रचा है-उसको जिसने नहीं पहचाना वही पतित है ! ॥ १४ ॥ इस लिए ईश्वर को पहचानना चाहिए-जन्मसार्थक करना चाहिए और यदि यह कुछ न जान पड़े तो सत्संग करना चाहिए-इससे सब कुछ मालूम हो जायगा ॥ १५ ॥ जो भगवान् को जानता है वही संत है-और वही शाश्वत और अशाश्वत (नित्यानित्य) का निश्चय करता है ॥ १६ ॥ जिसने परमात्मा का अचल और अटल' होना अनुभव कर लिया है उसीको महानुभाव, संत और साधु जानना चाहिए ॥ १७ ॥ जो रहता तो लोगों में है; पर बातें करता है मनुष्यों के बाहर की-अलौकिक-और अन्तर में जिसके ज्ञान जगता है, वही साधु है ! ॥ १८ ॥ परमात्मा को निर्गुण निराकार अनुभव करना ही मुख्य ज्ञान है-इससे भिन्न सब अज्ञान है।॥ १६॥ पेट भरने के लिए जो अनेक विद्याओं का अभ्यास किया " जाता है उसे भी ज्ञान कहते हैं, पर उससे जन्म सार्थक नहीं होता॥२०॥ जिससे परमात्मा पहचाना जाय वही एक ज्ञान है-और उसीसे जीवन सार्थक होता है- बाकी सब कुछ निरर्थक है; पेटविद्या है ! ॥२१॥ जन्मभर पेट भरते हैं; देह की रक्षा करते हैं। पर अन्तकाल में यह सव ज्यर्थ जाता है ॥ २२ ॥ एवं, पेट भरने की विद्या को सद्विद्या न कहना चाहिए। जिससे सर्वव्यापक वस्तु (ब्रह्म) तत्काल ही मिल जाय वही ज्ञान है ! ॥२३॥ यही ज्ञान जिसके पास है उसीको साधु जानना चाहिए-उसके पास जाकर परम शान्ति का उपाय पूछना चाहिए ॥ २४ ॥ अज्ञान पुरुप के पास अज्ञान पुरुष के जाने से ज्ञान कैसे मिलेगा? दरिद्री पुरुष के पास दरिद्री यदि मांगने जाय तो उसे धन कहां से मिलेगा ? ॥ २५ ॥ यदि रोगी के पास रोगी जाय, तो वहां उसे आरोग्य कैसे मिलेगा, अथवा निर्बल के पास निनल को सहारा कैसे मिलेगा? ॥ २६ ॥ पिशाच के । पास पिशाच के जाने से क्या मतलब निकल सकता है ? और यदि उन्मत्त पुरुष उन्मत्त ही पुरुष की भेट करे तो उसे समझावेगा कौन ? ॥ २७॥ भिखारी से भीख; दीक्षाहीन से दीक्षा और कृष्णपक्ष में उजेला कैसे मिलेगा? ॥ २८ ॥ अनियमित पुरुष के पास यदि अनियमित ही पुरुप जाय तो वह नियमित पुरुष कैसे बन सकता है ? और यदि वद्ध पुरुष .