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शिल्य-लक्षण। भ्रान्ति में पड़ा रहता है ॥५॥ केवल शब्दों ही से बड़ी बड़ी बातें बोलता है: वैराग्य का लेश नहीं है और पश्चात्ताप, धैर्य तथा साधन का मान नहीं पकड़ता ॥ २६ ॥ भक्ति, विरनि और शांति नहीं है: सद्वृत्ति, तीनता और दमन नहीं है; तया कृपा, दया, तृन्नि, सुबुद्धि विलकुल ही नहीं है ॥ ८७ || काया को तशित करने में निर्दलई: धर्म-विषय में परम कृपा है; सदाचरण नहीं ग्रहण करता; और कठोर हृदय-चाला है ॥ संसार के लोगों से सरलता का बर्ताच नहीं करता, स- जनों को अप्रिय है और दिन रात दूसरों की हीनता मन में रखता है ॥८६॥ सदा सर्वदा झूठ बोलता है, मायावी बातें करके दूसरों को फं- साता है, क्रिया और विचार आदि, किसी बात में सत्यता नहीं रखता ॥६० ॥ दूसरे को पीड़ा देने में तत्पर रहता है; और बिच्छू या सर्प की तरह, कुराब्द कह कर, सब के अन्त करण चिद्ध करता है ॥ ११॥ अपने अवगुण छिपाना है, दूसरों से कठोर वचन बोलता है और विना-गुणदोप- बालों में झठे गुणदोष लगाता है ॥ १२ ॥ पापी और निर्दयी है, तथा दुराचारी और हिंसक की तरह दूसरे के दुःख में दुखी नहीं होता । ६३ ॥ दुर्जन दूसरों का दुख तो नहीं जानते; किन्तु दुखी को ही और दुख देते हैं, तथा उनके दुख पाने पर अपने मन में आनन्दित होते हैं ॥ ६ ॥ जो अपने दुख में तो दुखित होता है और दूसरे के दुख में हैं- लता है उसे यमपुरी प्राप्त होती है और यमदूत ताड़ना देते हैं ॥ १५॥ ऐसे जो विचारे मदांध पुरुप है और पूर्वपापों के कारण जिन्हें सुबुद्धि नहीं भाती उन्हें भगवान् कैसे मिले ? ॥ ६६ ॥ ऐसे पुरुषों को तब जान पड़ेगा जब बुढ़ापे में अंग शिथिल पड़ जायेंगे और कुटुम्बी लोग छोड़ देंगे! ॥ ६७ ॥ अस्तु; उपर्युका दुर्गुणों से जो रहित हैं वही श्रेष्ठ सत् शिष्य हैं-वे अपनी दृढभक्षि से स्वानंद भोगते हैं ॥ ६८ || विकल्पी और कुलाभि- मानी लोग प्रपंच के कारण दुःखी होते हैं ॥ ६६ ॥ जिसके कारण दुख हुया हो उसीको दृढ़तापूर्वक पकड़े रहने से फिर दुख होना ही चाहिए ॥ १०० ॥ यह जान कर भी, कि संसार (गृहस्थी) के संग सें किसीको सुख नहीं होता, जो अपना सच्चा हित नहीं कर लेते चे अन्त में दुःखी होते हैं ॥ १०१॥ जो संसार में सुख मानते हैं वे प्राणी मूढ़मति ई-ऐसे पढ़तमूर्ख जानबूझ कर अंधे बनते हैं ॥ १०२ ॥ प्रपंच (गाईस्थ्य कर्म) सुख से करना चाहिए; परन्तु कुछ परमार्थ भी बढ़ाना चाहिए-यह ठीक नहीं है कि परमार्थ विलकुल ही डुवा दिया जाय ॥ १०३ ॥ ये गुरु-शिष्यों के लक्षण बतला दिये गये। अब मंत्र.के.लक्षण सुनिये ॥१०४॥