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समास १० 1 चैराग्य-निरूपण। ७६ वाले और बहुत सब अच्छी तरह जानते हैं ! ॥४२॥ तयापि, यदि सन्देह किया भी जाय, तो, क्या यह 'मृत्युलोक' नहीं होगा? यह मृत्युलोक तो है ही, और यहां जो पैदा होगा वह मरे ही गा!॥४३॥ अतएव, यहां आकर, इस जन्म को सफल करना चाहिए और मरने के बाद भी कीर्तिरूप ले संसार · में जीवित रहना चाहिए ॥४४॥ अन्यथा, यह निश्चय ही है कि छोटे- बड़े सभी प्राणी मृत्यु पाते हैं इसमें कोई सन्देह नहीं ॥ ४५ ॥ बड़े वैभववाले, बड़ी आयुवाले और अगाध महिमावाले इसी मृत्यु- मार्ग से चले गये हैं ॥४६॥ बहुत से पराक्रमी, बहुत से कपट-कर्म करने- युद्ध करनेवाले संग्रामशूर चले गये ॥४७॥ अनेक प्रकार का बल रखनेवाले, बहुत काल देखनेवाले और अनेक कुलों के • कुलवान् राजा चले गये ॥ ४८ ॥ बहुतों के पालक, बुद्धि के चालक और युक्तिवान् तार्किक चले गये ॥ ४६॥ विद्या के सागर, बल के पर्वत और धन के कुबेर, अनेकों, इसी मृत्युपथ से चले गये ॥ ५० ॥ बहुत पुरुषार्थ- वाले, बहुत तेजवाले, और बहुत विस्तार के साथ काम करनेवाले चले गये ॥ ५१ ॥ बहुत शस्त्रधारी चले गये, बहुत परोपकारी चले गये और बहुत से भिन्न भिन्न धर्मरक्षक इसी मृत्युमार्ग से गये ॥५२॥ बहुत प्रतापी, बहुत सत्कीर्तिवान् और बहुत से, भिन्न भिन्न नीतियों को जाननेवाले, नीतिवान् राजा, इसी मार्ग से चले गये ॥५३ ॥ बहुत से भिन्न भिन्न मत- वादी, बहुत प्रयत्नवादी और बहुत विवादी चले गये ॥ ५४ ॥ पंडितों के समूह, शब्दों की खटपट करनेवाले वैयाकरणी, और नाना मतों पर बड़े बड़े वाद करनेवाले चले गये ॥५५॥ तपस्वियों के समूह, अनेक संन्यासी और तत्व-विवेकी मृत्युपथ से चले गये ॥ ५६ ॥ बहुत से संसारी, अर्थात् गृहस्थ, बहुत से वेषधारी और बहुत से, नाना प्रकार के पुरुष, अनेक लीला दिखला कर, चले गये ॥५७॥ बहुत से ब्राह्मणसमुदाय और अनेकों आचार्य चले गये-न जाने कितने चले गये-कहां तक वतलावें ॥ ५८ ॥ अस्तु । इस प्रकार सभी चले गये । परन्तु रह गये सिर्फ वही एक-जो आत्मज्ञानी स्वरूपाकार हैं ॥ ५६ ॥ दसवाँ समास- -वैराग्य-निरूपण। ॥ श्रीराम ॥. यह संसार एक बहुत बढ़ी हुई नदी है। इसके बीच में अनेक जलचर वास करते हैं और विपैले कालसर्प डंसने के लिए दौड़ते हैं ॥१॥