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समास ८] सद्विद्या-निरूपण। ॥ २७॥ जो पुरुप वासना से तृप्त, गंभीर और योगी हैं। जो भक्त, सुन- सन और वीतरागी हैं, जो सौम्य, सात्विक, शुद्धमार्गी, निष्कपट और निर्व्यसनी हैं वे सद्विद्यावान हैं ॥ १८ ॥ जो चतुर, व्यवस्थित, गुणग्राही, अपना न रखनेवाला और मनुप्यों का संग्रह करनेवाला है तथा जो सब प्राणियों से बिनती और मित्रता करनेवाला है वह सद्विद्यावान् है ॥ १६॥ जो पुरुष द्रव्य से, स्त्री से, न्याय से, अन्तःकरण से. प्रवृत्ति से, निवृत्ति और सब से, निःसंग और शुचि हो वह पुरुष सद्विद्यावाला है ॥ २० ॥ जो मित्रता के साथ दूसरे का हित करता है, मधुर वचन कह कर दूसरे का शोक हरता है, जो सामर्थ्य के साथ रक्षा करता है और पुरुषार्थ के साथ जगत् का मित्र है वह सुविद्यावान् है ॥ २१ ॥ जो संशय मिटानेवाला है, विशाल वक्ता है और सब शंकाओं का समाधान करने में चतुर होकर भी श्रोता है, और जो कथा-निरूपण में शब्दार्थ कभी नहीं छोड़ता वह सुविद्यावान् है ॥ २२ ॥ जो विवाद न करते हुए संवाद करता है; जो संगरहित, निरुपाधि, है जो दुराशारहित, अक्रोध, निर्दोप और मत्सर न करनेवाला है वह सुविद्यावान है ॥ २३ ॥ जो विमल शानी है, निश्चयात्मक है, जो समाधान रखनेवाला है, जो भजन करने वाला है और जो सिद्ध होकर भी साधक है तथा साधन की रक्षा करता वह सद्विद्यावाला है ॥ २४ ॥ जो सुखरूप है; संतोषरूप है; अानन्दरूप है हास्यरूप है, और जो ऐक्यरूप है तथा सब को आत्मरूप समझता है वह सद्विद्यावाला पुरुष है ॥ २५ ॥ जो भाग्यवान् है; विजयी है; रूपवान् है; गुणवान् है; आचारवान् है; क्रियावान् है; विचारवान् है, स्थित (स्थिर चित्त) है वही सुविद्यावाला पुरुप है ॥ २६ ॥ जो यशवान् , कीर्तिवान्, शक्विान् , सामर्थ्यवान् , वीर्यवान् , वर पाया हुआ, सत्यवान और सुकृती हो वह सुविद्यावाला है.॥ २७ ॥ जो मनुष्य विद्यावान् , कला- वान् , लक्ष्मीवान , लक्षणवान् , कुलवान् , शुचिवान् , बलवान् और दया- वान् हो उसे सुविद्यावाला समझो ॥ २८ ॥ जो युक्तिवान् , गुणवान , श्रेष्ठ, बुद्धिवान् , बहुत धैर्यवान् , दीक्षावान् , सदा सन्तुष्ट, निस्पृह और वीतरागी हो वह सद्विद्यावाला पुरुष है ॥ २६ ॥ अस्तु । ऐसे ऐसे उत्तम गुण होना सद्विद्या का लक्षण है। इन गुणों का अभ्यास करना चाहिए; इसी लिए यहां बतलाये हैं ॥ ३०॥ रूप और सुन्दरता का अभ्यास नहीं किया जा सकता-इस लिए ऐसे प्राक- तिक गुणों के लिए कोई उपाय नहीं चलता। तब अागन्तुक, अर्थात् आ जानेवाले, गुणों को पाने के लिए अवश्य कुछ न कुछ उपाय करना