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दासबोध। . [ दशक २ और प्रसंग आ पड़ने पर सामर्थ्य दिखलाने में मत चूको । व्यर्थ बड़ों का तिरस्कार कभी न करो ॥ १२ ॥ आलस में सुख न मानो । चुगली मत मुनो, बिना सोचे कोई काम मत करो ॥ १३ ॥ शरीर को बहुत सुख न देना चाहिए, पुरुष को प्रयत्न न छोड़ना चाहिये, कष्ट से कमीन घंबड़ाना चाहिए ॥ १४ ॥ सभा में लाज न करो, व्यर्थ वाचालता न दिखलायो, कुछ भी हो, पैज या होड़ मत लगाओं ॥ १५ ॥ बहुत चिन्ता मत करो, आलस में मत रहो, परस्त्री की ओर पापबुद्धि से मत देखो ॥ १६ ॥ किसीका अहसान मत लो, यदि लिया हो तो उसे न रखो-अर्थात् उसका बदला दे दो, दूसरे को दुख न दो और विश्वासघात न करो ॥ १७ ॥ अशुद्ध न रहो, मैले कपड़े मत पहनो, जानेवाले से यह मत पूछो कि कहां जाते हो ॥ १८ ॥ व्यापकता या सर्वप्रियता मत छोड़ो, पराधीन मत हो, अपना बोझा दूसरे पर मत डालो ॥ १६ ॥ बिना लिखा-पढ़ी के देन-लेन या व्यवहार मत करो, हीन से ऋण मत लो, गवाही बिना राजद्वार मत जाओ ॥ २० ॥ झूठी बात मत सुनो, सार्वजनिक वात को मिथ्या न बत- लाओ । जहां आदर न हो वहां बिलकुल न बोलो ॥ २१ ॥ मत्सर या डाह मत करो, अन्याय बिना किसीको पीड़ा मत दो, अपने शारीरिक बल के अभिमान में आकर अनीति का बर्ताव त करो ॥२२॥ बहुत भोजन न करो, बहुत मत सोओ, चुगुलखोर के पास बहुत दिन न रहो ॥ २३ ॥ अपने की गवाही मत दो, अपनी कीर्ति न वर्णन करो, स्ययं बात कह कर मत हँसो ॥ २४ ॥ धूम्रपान मत करो, मादक द्रव्य मत सेवन करो, वाचाल से मित्रता कभी न करो ॥ २५ ॥ वेकाम सत रहो, नीच बात मत सहो, चाहे बड़ों का भी हो; पर यदि बिना कष्ट मिला हो तो वह अन्न मत खाओ ॥ २६ ॥ मुहँ में गाली मत आने दो, दूसरे को देख कर मत हँसो, अपने मन में, कुलवान् के विषय में, हीनता न लाभो ॥ २७ ॥ किसी की वस्तु मत चुराओ, बहुत कृपण मत बनो, अपने प्रेमियों से कभी लड़ाई झगड़ा मत करो ॥ २८ ॥ किसीका घात न करो, झूठी गवाही. मत दो, कभी असत्य वर्ताच मत करो ॥ २६ ॥ चोरी चुगली न करो, पर- स्त्रीगमन न करो, पीछे किसीकी बुराई मत करो ॥ ३० ॥ समय आ पड़ने पर धैर्य न छोड़ो, सत्वगुण मत छोड़ो और शरण आये हुए बैरी को दंड. न दो॥ ३१॥ अल्प धन पाकर मतवाले न बन जाओ, हरिभक्ति में लाज न करो, पवित्र जनों के बीच में अमर्याद बर्ताव न करो ॥ ३२ ॥ मूर्ख से सम्बन्ध न करो, अंधेरे में हाथ न डालो और असावधानी से अपनी वस्तु कहीं न भूल जात्रो ॥ ३३ ॥ स्नान और सन्ध्या न छोड़ो, कुलाचार