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२० दासबोध। [ दशक १ मिथ्या है, यह बात अपने अनुभव से जान पड़ी। दो दिन का जीवन है, चाहे जहां रह सकते हैं ।॥ ५० ॥ यदि देह को अपना कहें, तो यह भी बहुतेरों के लिये बना है । जुओं ने प्राणियों के मस्तक पर घर बनाये हैं और उसे भक्षण करते हैं ॥ ५१ ॥ प्रत्येक रोमरंध्र में कीड़े लगे रहते हैं, घाव हो जाने पर कीड़े पड़ जाते हैं, प्राणियों के पेट में जन्तु होते हैं, यह सभी जानते हैं ॥५२॥ दांतों, पाखों और कानों में कीड़े लगते हैं तथा बग्धी ( कीटक विशेप.) मांस में घुस कर काटती हैं ॥ ५३ ॥ डाँस खून पीते हैं, किलौनी मांस में घुसती हैं, पिस्सू अकस्मात काट कर भागते हैं ॥ ५४ ॥ भौंरा और वरै काट खाती हैं । जोक खून चूसती है । बीछी और सांप, इत्यादि काट खाते हैं ॥ ५५ ॥ जन्म से देह को पालते हैं और उसे अकस्मात् बाघ ले जाता है अथवा भेड़िया बलात्कार से खा जाता है ॥ ५६ ॥ चूहे या विल्लियां काट खाती हैं, कुत्ते और घोड़े मांस नोच लेते हैं, तथा रीछ और वन्दर धबड़ा कर मार डालते हैं ॥ ५७ ॥ ऊंट सुहँ से पकड़ कर उठा लेते हैं, हाथी चीर फाड़ डालते हैं और बैल अचानक सींगों से मार डालते हैं ॥ ५८ ॥ चोर तडातड़ लाठियां बरसाते हैं, भूत डरवा कर मार डालते हैं । अस्तु । इस देह की ऐसी ही दशा है ॥ ५६ ॥ . यह शरीर किसी एक का नहीं है; किन्तु अनेकों का है; तथापि ये मूर्ख कहते हैं, हमारा है । परन्तु तापत्रय में, अर्थात् तापत्रय के समासों (द० ३, स०६-८) में बतलाया गया है कि यह शरीर जीवों का खाद्य है ॥ ६०॥ देह यदि परमार्थ में लगाया जाय तभी तो यह सार्थक है; नहीं तो नाना आघातों और मृत्युपथ के द्वारा इसे व्यर्थ ही गया सम- सिये ॥ ६१ ॥ अस्तु । जो प्रापंचिक, अर्थात् प्रपंच में पड़े हुए, मूर्ख हैं वे परमार्थ-सुख क्या जाने ? ऐसे मूखौँ के कुछ थोड़े. लक्षण आगे कहे गये हैं ॥ ६२॥