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संदर्भ 1. धरम करम दुइ एक हैं, समुझि लेहु मन मांहि । धरम बिना जौ करम है, 'रविदास' न सुख तिस मांहि ॥
'रविदास' हौं निज हत्थहिं, राखौं रांबी आर। सुकिरित ही मम धरम है, तारैगा भव पार ॥ भक्ति और जन; पृ.-2 74/ दलित मुक्ति की विरासत: संत रविदास