दत्तिण अफ्रीफा फा सत्याग्रए
दर
उतारा जाये। पर इस प्रकार का प्रतिवध केवल स्वास्थ्य के नियमी
के खयाल से ही और मो भी बन्द्रगाह के टाक्टर को 'भात्ता के आधार पर ही किया जा सकता हैं| पर नेटाल कौ सरकार ते
उसका केबल राजनैतिक उपयोग-«श्र्थात सरामर दुसप्रयोग किया |और यद्यपि जद्दाज पर उस रोग फा एक भी रोगी न भा तथापि दोनों जहाजों को नेटाज्ञ कीसरकार ने २३ दिन ठझ उर्बन फो खाड़ी मेंरोक रक््फ़ा | इस घोच फमेटी या काम
बराबर जारी रहा। दादा अच्दुल्ला 'कोलेंड' के मालिक थे और
जादिरी' के एजेस्ट थे। उन्हे कमेटी ने खूब धमफाया-वमकाया। अगर स्टीमरों को लौटा दोगे तो आपका इस तरह फायदा ऊया जायेगा, आदि लानच भी दिसाये। कितनों हो नेयह ढर भी दिखाया कि अगर वे जहाओों को न ज्ञौटावंगे, तो इनके व्यापार
को द्वानि पहुँचायी जावेगी |पर इस दूफान के भागीदार ऐसे-चमे
न थे। घमकी देनेवालो से उन्होंने फहा--"मेरा तमाम व्यापार भत्ते ही द्ूव जावे । कगठते-कंगड़ते इसके पीछे मेरा सवंनाश भी हो जाये, पर आपसे डरकर इन निर्दोष मुसाफिरों को वापिस ज्ौदाने का अपराध मुमसे नहीं होगा। आप याद रक््खे कि जैसे आपको अपने देश का अभिमान है, वैसा ही कुछ मुझे भी होना
चाहिए। इस दूकान के जो पुरान वकील थे वे भो बड़े पैयेशोल ओर चोर पुरुष ये ।
- सौभाग्यवश इसी अवसर पर स्वर्गोय मनसुखलाल नाझिर (सूरत के एक कायस्थ सजन ओर नानाभाई हरिदास के भानजें)
अफ्रोफा पहुँचे। मेरी उनको कोई जान-पहचान नहीं थी । उनके उघर जाने को भी मुझे कोई खबर नहीं थी। कहने को
आवश्यकता नहीं कि इन 'नादरी” और 'क्रोलेंड” के मुसाफिरो रो लानेवाज्ञा मैं नहीं था, न मेरा उसमें जरा भी हाथ था। उसमें