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अफ्रीका का सत्याप्रह
यह जानने के लिए भी काफी कारण थे कि दृड़तालियों का एद्देश कोई उपद्रव करना नहीं था। दृढताल् का अन्तिम परिणाम
तीन पौंड के कर का रद द्वोजाना था। सच पृद्धा जाय वो झांति-' प्रिय लोगों को यदि वे गलती करें ते' शांति युक्त उपायों से दी राह पर लाना चाहिए। फिर यहाँ सचा क्ोकोपकारी नहीं थी। उसका अस्तित्व तो केबल गोरों केउपक्ार केलिए ही था| वह
साधारणतया भारतीयों की विरोधिनी थी। अर्थात इस एक पत्तीय
सत्ता फी निरंकुशता कभी उचित और ह्षम्य नहीं मानी जा सकती |
इसलिए मेरी मत्रि के श्रतुसार तो यहाँ सत्ता का दुरुपयोग
हीहुआ। जिसकायेकीसिद्धिकेलिए इस तरह सत्ता कादुरु
पयोग किया जाता है,चद क्रमी सिद्ध नहीं होता। क्षणिक सिद्धि जरूर मिलती हुईमाछूम द्वोती है, पर स्थायी सिद्धि तो कदापि नहीं मिल सकती । दक्तिण आफ्रिका में तोजिस कर की रक्षा
के लिए यद अत्याचार किया गया, वही छ. माद्द केचाद उठ गया। इस तरह कई वार दु.ख सुल्च के लिए ही होता है। इस दुख की
पुकार चारों दरफ मच गई ।मेंतो यद्द मानण हूँ.कि जिस तरद्द
एक यन्त्र से प्रत्येक वस्तु काअपना स्थान होता है,उसी प्रकार
युद्ध मेंभी प्रत्येक बत्तु काभीअपना एक निश्चित स्थात होता
६। ओर जिस प्रकार गंजय।गर्दोयँत्रकीगतिमेंवाधक होता है,उसीप्रकारकितनीद्वीचस्तुर्ययुद्ध कीगि कोभो रोक देतोहूं । हम दो निमिन्न मात्र होते हैं, इसलिए हम यह दमेशा नहीं जान सकते कि कौनसी चीज़ों तो हमारे लिए प्रतिकृक्त होती
हैं,ओर कौनसी अनुकूत्त ।इसलिए हम केवल साधनमात्र जानने केअधिकारी हूं ।साधन यदि पषित्र हों तो हम परिणाम के विषय
मेनिर्भयकौरनिश्चिन्दरहसकतेहैं.!