सेठ दाऊद महमद आदि का-युद्ध में शामिल होना.
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सकता था, ओर विना व्यापारी परवाने के व्यापार करना जुर्मथा।
नेटाल से टरांसवाल मे आते समय भी परवाने दिखाने पढ़ते, नहीं तोगिरफ्तारी होती! पर परवानों की तो होली जला दी गईं थो न ? इसक्िए रास्ता साफ था। दोनों मार्गों! का अवल्वम्धन किया गया | कई बिना परवाने लिये हो फरी करने क्गे, और
कई लोग दू (सवाल में प्रवेश करते समय परवाने न दिखाने के कारण गिरफ्तार होने ्गे। अच्च जरा युद्ध का रंग जमा, सबभ्चकी परीक्षा कासमय आया,
मेटाल से ओर लोग भी श्राये । जोहान्सबग में भी गिरफ्तारियाँ
शुरू हो गई । अब तो यह स्थिति हो गई कि जो चाहता वही गिरफ्तार हो सकता था। जेल्ले' भरने लग गई। भला अब कहीं सोराबजी बाहर रद्द सकते थे ? वह भी पकडे गये। नेटाल से आये हुए सब भारतीयों को छः-छ' मद्दीते की जेल मिली, और ट्रांसचाल वालों को चार दिन से क्ृगां कर तीन भद्दीने तक को । इस तरह गिरफ्तार किये गये लोगों मे हमारे इसाम साहब
भी थे। उनकी कैद वा आरम्भ चार दिन से हुआ था। बह फेरी
मे पकड़े गये |उनका शरीर ऐस्ता नाजुक था, कि लोग उन्हें जेल
जाते हुए देख कर हँसते थे। कई लोग आकर मुमसे कहते “साई, इमाम साहब को इसमें शामित्ञ न करो तो अच्छा हो।
वह कोम को लज्ञित करंगे”” । मैंने इस चेतावनी पर जरा भी ध्यान नहीं दिया। इमाम साहत्र की शक्ति की नाप-जोख करने वाला
मैंकौन द्वोवा हूँ १ यद्द सब सत्य है कि इमाम साहब कसी नंगे पैर नहीं चलते थे। शौकिया थे उनकी स्त्री मलाई महिला थी |घर
बढ़ा सजा हुआ रखते, और विना घोड़ा-गाड़ी लियेकहीं न जाते । पर उनके दिल को कौन जानता था ? यही इमाम साहब चार दिन