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और भी कई मीतरी कठिनाइयां ट् स अध्याय से पाठकों कोकुछ भीतरी कठिनाइयों का अन्दाज लग गया होगा। मुझपर हमला हुआ उस समय मेरे बाल-बच्चे तो फिनिक्स में रहते थे। अतः हमले का दवात्ञ सुनकर उन्हें चिन्ता होना एक स्वभाविक बात थी | यह तो हो ही नहीं सकता था कि मुझे देखने के लिए फिनिक्स से
पैसे खर्च करके वे जोहान्सवर्ग दौड आवें । इसलिए अच्छा होने पर मुझे ही वहाँ जाना चाहिए था। नेटाल और ट्रान्सवाल् के बीच दर किसी काम-काज से मेरा जाना-आना हुआ ही करता
था| मममौते के विषय में नेटाल में भो बहुत गलतफदमियाँ
फैी हुईथीं। मेरे पास तथा अन्य मित्रों केपास उधर से पत्र आते थे,उसपर से इन बातों को मैंजानता था। 'इसरि्हियन ओपीनियन! के पते पर तो कई कटाज-घआक्तेप भरे पत्र आते। उनका भी पुद्ुल्त मेरे पास था। यद्यपि सत्याम्रह तो द्रान्सवाल के भारतीयों को ही करना थां, तथापि इस विषय में नेटाज्ञ के भार-
तीयों की सम्मति लेना भी अभी बाकी था। ट्रान्सवाल के भार-