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बोश्नस्लढ़ाई
लिखने के लिए यहाँ स्थान नहीं है। इसलिए यहाँ पर सिफ यही
कह देनाचाहता हूँकिहमसेंसेमुख्य-मुख्य पुरुषों ने घायलों
तथा पीड़ितों की शुभरूषा-परिचयो करने की शिक्षा अहण की। अपनी शारीरिक स्थिति के विषय में ढाक्टरों से प्रमाणपत्र प्राप्त
किये, और लड़ाई पर जाने के लिए की गयी माँग को सरकार
ने मंजूर कर लिया। इस पत्र और उसके साथ की गयी प्रार्थना स्वीकार करने के आग्रह का बहुत अच्छा असर पढ़ी। पत्र के उत्तर में सरकार ने अदसानमन्दी जाहिर की। पर उस समय उसे स्वीकार फरने से इन्कार कर दिया। इस बीच वोशरों का चल बढ़ता ज। रह्य था। बाढ़ की तरह वे वात की बात में सारे
देश मेंफैलते जा रद्दे थे। यह भय होने लगा कि वे कहीं नेटाल की राजधानी तक चले न आवें। हताइतों की संख्या चहुत बढ़
गयी। हमारा प्रयत्त तो बराबर जारी था हीआखिर ऐम्व्युलन्स
कोर ( घायलों को उठा ते जाकर उनकी सेवा-शुभ्रषा करनेवात्षा दत्त ) केबदौर हम रख लिये गये । हमने तो यंदाँतक लिख भेजा कि दवाखानों मेंपाखाना साफ करने माहू-बुहारु करने के लिए
भी हम तेयार हैं। फिर इसमें कौन आश्चय की बात हैयदि सरकार के हमें अम्व्थुलन्स कोर मेंकाम करने के लिए रख लेने
पर हमेंआनन्द हो |हम तो चाहते ये किकम-से-कम स्वतत्न और
गिरमिल-मुक्त भारतीयों को इस दल्ल मेंजिया जाये पर इसने तो यह भी सूचना दी थी कि यदि गिरमिटियों को भी इसमें
शामित्न कर दिया जाय तो अच्छा होगा। पर परित्यिति ऐसी
' थी कि इस समय सरकार को जितने आदमी मिलते उतने ही थोड़े थे।इसलिए तमाम को्ियों में निमन्त्रण भेजे गये । 'फल् यह हुआ कि भारतीयों को शोमा देने योग्य ११०० आद-
मियों की विशाल टुकढ़ी डबेन से रवाना हुई। वह जब रवाना