पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/८१

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तुलसी की जीवन-भूमि घस हो गया तुलसी का 'बालपन' क्या गृहस्व-जीवन । हाँ, राजा रघुराज सिंह ने छ साहस कर इतना अवश्य लिख दिया कि- राजापुर यमुना के तीरा । तुलसी तहाँ से मति धीरा । पंडित सफल शाल विशाता | विद्या में विश्वास अधाता || भो बिचार भाई जब नारी | ताला अतिशय नेह पसारी, आयो तियहि लिवावन माई। करीन तुलसी तियहिं पिदा। नहर हित तिरिया निरशानी । तदपि न फलो तानु फछु मानी।। आप गये फछु फाज वजारा । तत्र भाई ले भगिनि सिधारा ॥ श्रीभक्तमाला, पृट ७८२] फिर जो कुछ हुआ उसका किसी न किसी रूप में थोड़ा-बहुत पता सबको है। निदान उसे छोड़ बताया यहाँ यह जाता है कि उसके परिणामस्वरूप- नारि ययन शर तम उर लागे । पूरय सफल पुण्य फल लागे । तुलसिदास फह मानि गलानी। है सति है सति तिय तुव वानी ॥ बहुरे नुरत मूफ फी नाई । गे फाशी तलि भवन गोसाई ।। विनती फिय विश्वेश्वर पाहीं । रामभक्ति दीले भोहि काही || गुरु नरहरिदास यहाँ तक तो कोई घात न थी। आपने भी इसे चुपचाप पढ़ लिया । परंतु यह क्या ? सूफर क्षेत्र गयो पुनि सोई । गुरु फियो तई अति मुद मोई॥ गुरु को अति सेवन तहँ टायो । रामायण अभ्यात्महि पायो । तुलसीदास आय पुनि फाशी । मे अनन्य रघुनाथ उपासी । प्रश्न उठता है कि यह 'सूकर क्षेत्र' कहाँ है। 'काशी' छोड़ कर 'सूकर क्षेत्र' का यह प्रस्थान कैसा ? 'सूकर क्षेत्र के विषय में तो नहीं, हाँ, गुरु के विषय में उक्त राना साहब का संकेत है-