पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/७८

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६७ तुलसी का सूकरखेत- आठवाँ प्रमाण इस तर्क के आधार पर है कि यदि सूकर (सोरों) खेत उनका जन्मस्थान नहीं था, तो तुलसीदास अपने बालपन में जब वे .'अति भचेत' थे, वहाँ कैसे पहुंच गए। उत्तर में डा० गुस का मनन भधिकतर यह कहा गया है कि 'सूकरखेत' अयोध्या के निकट वह स्थान है जहाँ सरयू और घाघरा का संगम है, और जो अव पसका कहलाता है। प्रत्युत्तर में सोरों के लेखकों ने अपने नगर की प्राचीनता और तीर्थस्थानों में उसकी महत्ता विस्तारपूर्वक सिद्ध की है । इसमें सन्देह नहीं कि सोरों एक प्राचीन स्थान और तीर्थ है । प्रस्तुत लेखक ने स्वतः वहाँ के एक सुरक्षित स्थान में तेरहवीं शताब्दी विक्रमीय के इस प्रकार के लेख देखे हैं जिनमें सोरों-याना का उल्लेख हुमा है। पस्कावाले 'सूकरखेत' की प्राचीनता कितनी है, निश्चयपूर्वक इस संबंध में वह कुछ नहीं कह सकता। किंतु सोरों का प्राचीन माम 'सौकरव' था, सूकरखेत नहीं । अपने विस्तृत प्रमाणों में सोरों के विद्वान् एक भी ऐसा नहीं दे सके है जिससे यह सिद्ध हो सके कि तुलसीदास के समय तक भी, यदि और पूर्व न सही, इसका नाम 'सूफरखेत' या 'सूकरक्षेत्र' था। 'सूफरक्षेत्र के पक्ष के जितने भी प्रमाण है, वे सब के सब 'मानस' की रचना-तिथि से एक 'शताब्दी से भी अधिक याद के हैं। इसका अपवाद केवल सोरों की उस सामग्री से मिलता है जिसकी परीक्षा पिछले अध्याय में हुई है, और जो उक्त परीक्षा के अनंतर सर्वथा अविश्वसनीय प्रमाणित हुई है। एक बात अवश्य है : इस बात के लिए प्रमाण यथेष्ट है कि कवि जिस समय अपने जीवन-प्रभात में ही माता-पिता से हीन और अनाथ होकर दीनं और दुखी भटक रहा था, उस समय वह संतों के संपर्क में आया । ये संत रामभक्त थे, और इन्हीं के उपदेशों से. उसे राम-भक्ति के लिए यथेष्ट प्रेरणा मिली । फलतः यदि.सोरों ही वस्तुतः उल्लिखित