पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/७५

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तुलसी का सूफरखेत सूकरखेत में दोनों की मूर्तियां स्थापित हैं। धाराही देवी या उत्तरी भवानी का मंदिर पसका की उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है। ...": गोस्वामी जी का संबंध इसी सूकरक्षेत्र से था, इसका एक प्रमाण यह भी मिलता है कि शूकरक्षेत्र के मंदिर से मिली हुई एक बहुत प्राचीन कुटी है जो अपने आसपास की भूमि से बीस फुट की ऊँचाई पर स्थित है "कुटी के द्वार पर वरगद का एक विशाल वृक्ष है और "पीछे एक उतना ही पुराना पीपल का । ये दोनों बाबा नरहरिदास (नरहर्यानंद) के लगाए कहे जाते हैं और यह कुटी भी उन्हीं की है। यह.वहाँ के वर्तमान अधिकारी बाबा रामअवधदास ने बतायां और संतसमाज में भी यही ख्याति है। .. बाबा रामअवधदास नरहरिदास जी की शिष्यपरंपरा की दसवीं पीढ़ी में हैं। इनका कथन है कि इस गही के संस्थापक श्री नरहरिदास जी की साधुता पर मुग्ध होकर उनके समकालीन पसका के राजा धौकतसिंह. ने कुछ वृत्ति दी थी जो अब तक वैसी ही उनकी शिष्य परंपरा के 'अधिकार में चली आती है। मेरे विचार मैं तो गोस्वामी जी के गुरुदेव की स्मृति भी अब तक उसी भूमि (वृत्ति) के कारणे सुरक्षित रह सकी है। नहीं तो एक दों पीढ़ियों के बाद ही उसका भी चिन्ह मिट जाता । उस भूमि पर आज भी लगान नहीं लिया जाता । पसका राज्य के पदाधिकारी उपर्युक्त कथन की पुष्टि करते हैं | वृशिदाता तथा भोक्ता दोनों की परंपरा अब तक अविच्छिन्न रूप से चली आती है। गोस्वामी जी के पसका वा सूकरखेत आने की बात इस प्रकार "भी सिद्ध होती है कि वाचा. वेणीमाधवदास, जो 'गोसाई-चरित' के "परंपरा से प्रसिद्ध रचयिता हैं, पसका: के ही निवासी थे। शिवसिंह सरोज' तथा यू० पी० डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, गोंडा डिस्ट्रक्ट, दोनों इसकी पुष्टि करते हैं। 'सेंगर ने स्वयं 'गोसाई चरित' देखा था तभी तो वे "लिखतें हैं कि-