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तुलसी की जीवन-भूमि ....: असी एक दश आठः शत भाद्र शुक्ल तिथि पाँच ।

अवधपुरी सुंदर तिलक रामचरण रतिः : सांच ||

सम्वतः: शत अष्टादशौ असी तीनि ऋतु खास |

..युद्धकांड सुसमास : भो रामजन्म मधुमासः॥

७: ‘उचर कांड समाप्त भो सुभग जानकी घाट । रामचरण शुभ तिलक कृत जहँ सन्तन के ठाट | "रामचरण ने इस तिलक में जो 'शूकरखेत' का अर्थ किया है परिचारिका.का मत उसको ध्यान में रख कर देखें यह कि उनके कुछ समय पश्चात् एक दूसरे महानुभाव ने इसकी टीका में लिखा है- अव जो कोई पूछ कि भला तुम कहाँ पायो है ता पर कहत हैं कि पुनः वही कथा जो शंभु कीन्ह फेरि काकभुशुण्डिहि दीन तिन्ह से याज्ञ- वल्क्य पाये ते भरद्वाजः प्रति गाये सो कथा कहूँ से हमारे गुरू जी को प्राति भई सो हम अपने गुरू जी से सुना कहां सुना सूकरखेत नाम वाराह- क्षेत्र जो श्री अयोध्या जी से पश्चिम भाग में श्री सरयू घाघरा को संगम है तहां पर अथवा सूकर. नाम जो सुष्टु वस्तु को करै सो को है संत संग सो सत् संग क्षेत्र में अपने गुरू से सुनी परंतु समुझी नहीं तस जस श्रीरामचरित्र मानस को-स्वरूप है काहे ते कि तब वाल्यावस्था अति अचेत रहे। [रामायणमानसप्रचारिका, पृष्ठ १२४ ] विचारने की बात है कि इसका रचयिता स्वयं कहता है- रामपुरी मंगलमयी देत सफल अंहलाद । तहां प्रकट आचार्य में स्वामी रामप्रसाद ॥५॥ श्रीमत्परमाचार्य है. तुलसिदास सुखसार । श्रीमद्रामप्रसाद जी विदितः तासु अवतार ॥६॥