पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/६९

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तुलसी का सूकरखेत ॥ दोहाथ । सोई कथा हमारे गुरुन को प्राप्ति भई है को जाने कहां ते सोई कया मैं अपने गुरुन ते सुनेउ है कथा सु कह सुष्ट कथा अरु शूकर कहै जो सुटपदार्थ को उत्पन्न करै ताको शूकर खेत कही तहां सुष्ट पदार्थ श्रीरामयशगुण चरित्र सो सरसंग उत्पन्न करतु है ताते सत्संगै शंकरखेत है तेही सत्सा में गुरुन ते सुनते सुनेउ है अथवा शूकरखेत कहे याराहक्षेत्र श्री अयोध्या के पश्चिम तीनि योजन है सरयू तीर तहाँ सुनेट है तब मेरी चाल अवस्था रहै अचेत दशा रहै तेही दशा में जस कछु समुझि परेउ सो प्रहण भयो किंतु शूकरखेत शूकर जो है जैसे भूमि खोदत है जहां तहाँ तसे मोंको बालपने में कछु समुझि परेड कछु नहीं समुझि परेठ सो अहण भयो है। [रामायण तुलसीदासकृत सटीक, पृ० १०६ ] टीकाकार अयोध्यानिवासी श्री महंत रामचरण जी ने कृपा कर अपनी टीका का समय भी दे दिया है । लिखते हैं- सम्पत अष्टादश सुभग सत्चरि भर्द्ध सपाख । रामवरण ऋतुराज तिथि पञ्चशुक्ल वैशाख । हमारी दृष्टि में इससे सं० १८५० इसका रचना-काल निकलता है। यह काल शेप सोपानों के रचना - काल से मेल नहीं खाता फिर भी इस जन को यही काल ठीक जचता है। शेप सोपानों का क्रम से रचनाकाल है- २: असी एफ अ आठ दश सम्बत सावन पूर । अवध कांट को तिलक भो रामचरण रति र सम्बत सत अरु आठ..दश अंसी अवध सिय घाट | रामचरण वनकाण्ड को तिलफ पूर मति ठाट || सम्वत · शत. अष्टादशौ असी एफ शुफ बार।

ग्रीपम अन्त सुशुक्ल छठि रामचरण कहि पार॥