पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/६८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३२ तुलसी की जीवन-भूमि चली विमानन भीर तक, श्री वाराह समेत ! सरजू संगम घुरघुरा, तह वन सूफरखेत ||६|| सत जोजन की सभा भइ, वेद विदित उपचार । देवन के कारन सफल, फीजे जगत उधार ||७|| पट जोजन है अवध ते, पसका सो परमान । वास कछुक दिन करि तहाँ, चरचा वेद पुरान ||८|| तहा ते चलि दुह कोस ग्राम सियवार कहावै । सीता जू को धाम' ग्राम सो वेदन गावै ॥ चनो अजहु सियकूप अनूपम सुधा पानि बह । दासन को अवलंब कर परजटन जाय तह || तह रंहि तव संगत है बहुरि करि सब तीरथ नहाँ तहँ । यहि मिसि आये ढिग लखनपुर श्रीहनुमत अस्थान जहँ ॥१॥ [चरित्र, पृष्ठ ६२-३] 'तह वन सूकरखेत' का रहस्य समय पर खुलेगा। एक विशेष भूल छापे की प्रतीत होती है। वास्तव में 'षट जोजन है अवध ते' में 'षट' नहीं पाठ 'त्रय' ही होना चाहिए जैसा कि पहले 'त्रय जोजन जो अवध ते' में आ चुका है। 'चरित्र' के इस 'सूकरखेत' को आज सरकारी दुनिया नहीं जानती तो आश्चर्य क्या ? अभी तक तो टीका में सूफरखेत बहुत से विद्वान् भी इसको नहीं जानते । कुछ भी हो, रामचरितमानस के एक पुराने प्रतिष्ठित टीकाकार की टीका है विवादग्रस्त इस दोहे की- मैं पुनि निज गुरु सन सुनी, क्या तु शूकरखेत । समुझं नहीं तब. बालपन, तब अति रहेउँ अचेतं ।।