पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/६२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४६ . तुलसी की जीवन-भूमि कितने दिन यह व्यापार चला, इसका कुछ अनुमान लगा जानिए यह कि- वा पाछे वा मलेछनी की देह छूटी। तब देह छूटत ही वाको जन्म महावन में (ब्राह्मण के घर ) भयो। तव वे 'श्रीगुसाई जी की सेवक भई। तब यह कृतार्थ भई । सो कृपा कर यह तो कह दीजिए कि 'झारी' के शीतल जल से जीवन-लाभ करने के पश्चात् वह कितने दिन तक और मेवाफरो- 'सिनी वनी रही और फिर चोला.बदल कर कितने दिन में 'कृतार्थ भई । भाव यह कि जिस समय नंददास की दृष्टि लगी उस समय उसके कितने वसंत बीत चुके थे जो वार्ताकार ने लिख दिया- तव वा क्षत्री सों नंददास ने कहो जो-तुम मोसों कछू कहोगे तो मैं तुम्हारे ऊपर प्राण-त्याग करूंगी । 'नंददास के खोजी कहते हैं कि नंदास इस समय १६ वर्ष । आशा है, भविष्य में उनसे यह भी सुनने को मिलेगा कि वह क्षत्राणी इस समय (१) वर्ष की थी। वार्ता की वृत्ति अपने राम का मत यह है कि यह घटना नहीं दृष्टांत है और है इतिहास नहीं 'वात' देशकाल के अनुसार चात धना लेना ही इसका लक्ष्य है कुछ किसी के जीवन को खड़ा करना नहीं। तो भी इतना तो निश्चित ही समझिए कि 'वार्ता' के मतानुसार तुलसी 'पूरव' के ही ठहरते हैं कुछ पछाँह के कदापि नहीं। 'वार्ता' की मनोवृत्ति तो देखिए । उसमें कहा गया है- पाछे तुलसीदास ने श्रीगुसाई जी पास आइके दंढोत करी, और हाथ जोरि के विनती करी जो-महाराज ! पहिले ती नंददास बड़े विपई हते, परि अव तो भाप की कृपा से बड़ी भगवदीय भयो है । जो अनन्य भक्ति याकों भई है । सो ताको कारन क्या है ?