पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/५९

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वार्ता में तुलसीदास नंददास आनंदनिधि, रसिक सु प्रभुहित रँगमगे। :, ., लीला पद. रस रीति ग्रंथ रचना में नागर ॥ सरस उक्तिजुत जुक्ति भक्ति रस, गान उजागर । प्रचुर पयध लौ सुजस 'रामपुर' ग्राम निवासी ॥ संकल संकुल संबलित.भक्त. पद रेनु उपासी । चन्द्रहास अग्रज सुहृद, परम प्रेम पै मै पगे। नंददास आनंदनिधि, रसिक सुप्रभुहित रँगमगे ॥ [ भक्तमाल, पृ० ६९६] नाभादास के इस छप्पय के 'चन्द्रहास' को लेकर जो ऊहा मची है उसको हो लेने दें तो अच्छा । निवेदन अभी यह है कि यहाँ यदि 'नन्ददास' का संबंध ही इष्ट चन्द्रहास का पता था तो 'तुलसी' के समकालीन नामा' उनका गोत ही क्यों भूल गएं ? और इस 'चन्द्रहास' का पता ? है तो बस सोरों-सामग्री को है। देखिए न काशी के श्री ब्रजरनदास क्या लिखते हैं। पता नहीं कितनी खोज के बाद कहते हैं- उस समय चंद्रहास नाम का कोई ऐसा प्रसिद्ध व्यक्ति और उस पर नंददास जी से बढ़कर प्रसिद्ध व्यक्ति नहीं पाया जाता, जिसका उल्लेख कर नंददास जी का परिचय दिया जा सके। राजनीतिक या साहित्यिक इतिहासों या भक-शृंखला, किसी में तत्कालीन किसी प्रसिद्ध व्यक्ति का यह नाम नहीं मिलता । स्वभावतः किसी विशिष्ट .पुरुष से संबंध बतलाकर परिचय देने की प्रथा अवश्य है पर चंद्रहास के ऐसा पुरुप होने का कहीं कुछ पता नहीं है। इसलिए भाई भाई का संबंध, वतलाना, ही श्रीक ज्ञात होता है। ::": [नंददास-ग्रंथावली, पृष्ठ-११] 1