पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/५६

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- तुलसी की जीवन-भूमि हैं । अन्यथा २ में तो गुरु 'सेप सनातन का स्पष्ट उल्लेख भी है। और ३ का तो प्रत्यक्ष ही 'वार्ता' से विरोध है। 'वार्ता में तो इसका श्रेय नन्ददास वा गो० विट्ठलनाथ की महिमा को प्राप्त हुआ है न १४ की स्थिति भी वही है। वार्ता के नंददास तो तुलसीदास को लिखते हैं- मेरो विवाह प्रथम तो श्रीरामचन्द्र जी सो भयो हतो, ता पाठे बीच में श्रीकृष्ण माइ पोहोंचे, सो आइ के अन्चक ले गए। जो-जैसे कोई लौकिक में व्याह करि ले जाइ, और कोइ जोरावर लूटि लेइ । सो तैसे ही श्रीरामचंद्र जी में बल होतो तो मोकों श्रीकृष्ण कैसे ले जाते ? और (श्री रामचन्द्र जी तो एक पत्नीचत हैं । सो दूसरी पती कुं कैसे संमारेंगे ? एक पली हू वरावर संभारि न सके, सो रावण हरि के है गयो | और श्रीकृष्ण तो अनन्त अबलान के स्वामी है, और इनकी पत्नी भए पाछे कोई प्रकार को भय रहे माहीं है, एक कालावच्छिन्न अनन्त पत्नी सुख देत हैं । जासों मैंने श्रीकृष्ण पति कीनो है । सो जानोगे) अव तो तन, मन, धनं यह लोक परलोक हैं सो सच श्रीकृष्ण को है। ताते अव तो मैं परवस होइ के रह्यो हूँ । [अष्टछाप, पृष्ठ ५६७८] निश्चय ही यह नंददास वह नंददास नहीं जो आप ही कहते उक्त तुलसीदास के विषय में- 'नंददास' के हृदय-नयन को खोलेड सोई। उज्वल रस टपकाय दियौ, जानत सब कोई ।। 'चरित्र' का पक्ष हाँ, उक्त 'नंददास' का स्वरूप है- तब ते अधिक सप्रेम है, फरत कृष्ण गुनगान | आनंद सो विचरत रहै, नंददास सुखखान ||१|| हैं