पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/५३

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. वार्ता में तुलसीदास रच्यौ स्याम' 'सर बाछरू हरि बलदाऊ धामः ।। तो फिर 'बलदाऊ के प्रिय नाम 'राम' से इतनी चिढ़ क्यों जो 'राम' को 'स्याम' कर दिया। फिर संच तो कहें कयौ राम तें स्याम' के आधार पर ग्राम का नाम 'रामपुर' सिद्ध कैसे हो सकता है ? 'बदलि इष्ट अरु गाम' से 'रामग्राम' भले ही ध्वनित हो ले । किन्तु 'प्राणेशजी को पूरा पता है कि सोरों आन्दोलन से यह सब कुछ संभव है। संकेत हुआ नहीं कि पाठकों ने झट सब कुछ., समझ लिया। परन्तु आश्चर्य तो यह है कि 'तीन जन्म की लीला भावना' के रचयिता वार्ता के पारंगत पंडित श्री हरिराय जी भी इसको नहीं जानते । जानते भी कैसे ? उस समय सोरों- सामग्री किसी के पास थी कहाँ ? उसका प्राकटय तो इस शती में हुआ है न:? तुलसी का सौभाग्य ही समझिए कि जिनके पूर्वजों ने उनके राम से चिढ़ कर अपने 'पुर' का नाम ही बदल दिया वे ही आज उन पूर्वजों के किए पर पानी फेर उसी शम' के तुलसी के लिए आज न जाने क्या क्या कर रहे हैं। फिर भी लोग उनसे पूछना यही चाहते हैं कि क्या यह सच भी है ? अब तक सोगें की सारी सामग्री किसी कूड़े में क्यों पड़ी थी और आज एक एक कर सहसा प्रकट भी होने लगी तो कृपया इस बात को सर्वविदित क्यों नहीं कर देती कि उसका स्वयं नंददास की रचना से मेल क्यों नहीं ? कोई कहीं दिखा तो दे कि नंदास के किसी पद में यह संकीर्णता है । पंक्ति की बात तो और भी कठिन है । सुनिए, निवेदन नंददास जी का ही है । ललके की लालसा पर ध्यान तो दीजिए- राम-कृष्ण कहिऐ उठि भोर । अवध-ईस वे धनुष धरै है, ये बंज, माखन चोर ॥