पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/५२

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वार्ता में तुलसीदास ३५ रुचे तो चित्रकूट में रही, चन रुचे तो दंडकारण्य में रहो। एसे बड़े-बड़े धाम श्री रामचन्द्र जी ने पवित्र करे हैं। [वही, पृष्ठ ५७८] भाव यह कि 'पाती के आधार पर कभी यह सिद्ध नहीं हो सकता जो तुलसी वा नन्ददास 'सोरों' के पास किसी रामपुर में जन्मे थे और फिर नन्ददास ने उसे अपने प्रताप से 'श्यामपुर कर दिया। कारण यह कि 'बार्ता में कहीं इसका संकेत भी नहीं है। हाँ, उसकी साखी सर्वथा इसके विपरीत है। किन्तु आज की अद्भुत खोज है- श्री वृंदावन-निवासी प्राणेश कचि ने 'भष्टसखामृत' नामक काव्य- अंध में श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य तथा गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के अष्ट- छाप के भक्त कवियों की महिमा का वर्णन प्राणेश की खोज किया है, जिसकी एक हस्तलिखित प्रति गोकुल में प्राप्त हुई है। यह प्रतिलिपि सं० १८६५ के चैत्र शुक्ला ५ शुक्रवार को समाप्त हुई थी। इसमें नंददास जी के विषय में कुछ लिखा गया है, वह नीचे दिया जाता है- राम-भगत तुलसी-अनुज नंददास प्रज ख्यात । दुन सनौढ़िया सुकुल कवि कृष्ण भगत अवदात ॥ नंददास विठ्ठल-कृपा बहु वित्त वैभव पाय । खरच्यो सब परमार्थ हित श्री हरि भक्ति बढ़ाय॥ परयो राम ते स्याम निज वदलि इट अरु गाम । रच्यौ स्याम सर याछरू हरि बलदाऊ धाम || सौंपि अनुज दहास कर सुत दारा धन धाम । आए सूफर खेत तजि ब्रज बति सेयौ स्याम || नंददास · मुख-माधुरी : चोलनि प्रान अनूप । सुर नरं मुनि की का बली जिन मोहे ब्रजभूम ।। .