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( ख)

श्रीमती सूर्यकुमारीजी के कोई संतति जीवित न रही। उनके बहुत आग्रह करने पर भी राजकुमार धीटमेदसिंह जी ने उनके जीवन -काल में दूसरा विवाह नहीं किया । किनु उनके पियोग के पीछे, उनके आना- नुसार, कृष्णगड़ में विवाह किया जिससे उनके चिरंजीव चंशांपुर विद्यमान है।

श्रीमती सूर्यकुमारी जी बहुत शिक्षित थीं। उनका अध्ययन बहुत विस्तृत था । उनका हिंदी का पुस्तकालय परिपूर्ण था। हिंदी इतनी अच्छी लिखती थी और अक्षर इतने सुंदर होते थे कि देखनेवाले चमत्कृत रह जाते । स्वर्गवास के कुछ समय के पूर्व श्रीमती ने कहा था कि स्वामी विवेकानंद जी के सब प्रथा, व्याखानों और लेखों का प्रामाणिक हिंदी अनुवाद में स्पवाऊँगी। बाल्यकाल से ही स्वामीजीके लेखों और अध्यात्म विशेषतः अद्वैत वेदांत की और श्रीमती की रुचि थी। श्रीमती के निर्देशानुसार इसका कार्यक्रम पाँधा गया । साथ ही श्रीमती ने यह इच्छा प्रकट की कि इस संबंध में हिंदी में टरामोसम ग्रंथ के प्रकाशन के लिये एक अक्षय निधि की व्यवस्था का भी धूम्रपान हो जाय । इसका व्यवस्था-पत्र बनते बनते श्रीमती का स्वर्गवास हो गया।

राजकुमार श्री उमेदसिंहजी ने श्रीमती को अंतिम कामना के अनु- सार बीस हजार रुपये देकर काशी-नागरी-प्राचारिणी सभा के द्वारा ग्रंथमाला के प्रकाशन की व्यवस्था की। तीस हजार रुपये के सूद से गुरुकुल विश्वविद्यालय, कांगडी में सूर्यफुमारी आर्यभाषा गद्दी (चेयर) की स्थापना की।

पाँच हजार रुपये से उपर्युक्त गुरुकुल में चेयर के साथ ही सूर्य- कुमारी निधि की स्थापना कर सूर्यकुमारी-ग्रंथावली के प्रकाशन की व्यवस्था की।

पाँच हजार रुपये दरवार हाई स्कूल शाहपुरा में सूर्यकुमारो-विज्ञान भवन के लिए प्रदान किए। स्वामी विवेकानंदजी के यावत् निबंधों के अतिरिक्त और भी उत्त- मौशम ग्रंथ इस ग्रंथमाला में छापे जायेंगे और अल्प मूल्य पर सव- साधारण के लिये सुलभ होंगे । ग्रंथमाला की विक्री की आय इसी में लगाई जायगी । यो श्रीमती सूर्यकुमारी तथा श्रीमान् उमेदसिंह जी के पुण्य तथा यश की निरंतर वृद्धि होगी और और हिंदी भाषा का अभ्युदय तथा उसके पाठकों को ज्ञान-लाभ होगा।