पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/४६

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वार्ता में तुलसीदास को अपने प्रभु राधावल्लभ से पृथक कहा है। कृष्ण के इस प्रकार धनुष-बाण धारण करने की कथा अन्य किसी साधु के संबंध में प्रचलित न होने के कारण इस पद में गोस्वामी तुलसीदास से संबंधित इस 'चमत्कारिक घटना के संकेत को अभिप्रेत समझना चाहिए।' [ भक्त कवि व्यास जी, पृष्ठ १८७-८] श्री वासुदेव गोस्वामी के इस विवेचन में यदि सार है तो नागरीदास की साखी 'यह एक बड़ी बात है। कारण यह कि - एक प्रकार से यह आँख-देखी सारखी है, और है एक अनन्य कृष्णभक्त की साखी । . किन्तु इससे भी अधिक दर्शनीय वस्तु है यह कि स्वयं भक्त- वर नागरीदास, जो निश्चय ही वल्लभ-कुल के भक्त थे, 'वार्ता' के विपरीत कुछ और ही कथा सुनाते हैं । पाठकों की सुविधा के लिए यहाँ डा० माताप्रसाद गुप्त जी का दोनों का तुलानात्मक अध्ययन दिया जाता है। आप लिखते हैं- (क) 'माला' के अनुसार तुलसीदास एक समय अपनी यात्रा में गोवर्द्धन आ निकले थे, किन्तु 'वार्ता के अनुसार वे अपने छोटे भाई नंददास से मिलने के लिए गोवद्धन आए थे। (ख) माला' के अनुसार उन्हें गोस्वामी विट्ठलनाय जी श्रीनाथ जी के दर्शनों के लिए लिवा गए थे, जव कि 'बातों के अनुसार नंददास जी श्रीनाथ जी के दर्शनों के लिए गए थे और तुलसीदास उनके पीछे. पीछे गए थे। (ग)'मालाके अनुसार कहा...कहाँ छवि भापकी...' तुलसी- दास ने कहा, जब कि 'वातों के अनुसार इसे नंददास जी ने कहा। (घ) माला'. के अनुसार ठाकुर जी ने तुलसीदास की भक्ति के अधीन होकर स्वरूप-परिवर्तन किया, जब कि- 'वारी' के अनुसार 'नंद- दास जी. श्रीगुसांईजी के सेवक है। इस कानि से उन्होंने यह किया। . + ..