पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/४३

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तुलसी की जीवन-भूमि सेवन कीन्ह यथाविधि रूपा । भे प्रसन्न तत्र साधु अनूपा । आशिष दीन्ह अचल यह राजू । काहू काल न होइ अकाजू । रामायण निज कृत तहँ यापी । पूज्यो यहि अरि सके न चापी। प्रतिमा आंजनेय मँगवाई । भूप निकेत आपु पधराई । अजहूँ राजत भूपति धामा । पूजत प्राप्त होत मन कामा । [श्रीमहेश्वरगोगजचिकित्सा, पृष्ठ १०-११] यह सं० १९५७ वि० की बात है । भूमिका के अन्त में कवि का परिचय और पता है- समस्त भारत निवासियों का चरणसेवक महेश्वर रामपुरमथुराद्यधीश अयोध्या के पश्चिम ४० कोस सरयू के दक्षिणतट चन्द्रभागा के उत्तर तट जिला सीतापुर निवासी । [ वही, पृष्ठ २] फिर भी तुलसी जीवन में इस स्थान की इतनी उपेक्षा ? जिसे वैज्ञानिक दृष्टि से इसकी परीक्षा करनी हो उसे कहीं अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं । उसे यही 'कविवंश-वर्णन' भी प्राप्त हो जायगा । उसकी गणना से आप ही सिद्ध हो जायगा कि हृदयराम तुलसी के समकालीन थे। अधिक कहने की आवश्यकता नहीं । यदि संभव हो तो इस स्थान की शोध होनी चाहिए और इसी प्रकार चरित्र-वर्णित अन्य स्थानों को भी एक वार अपनी आँख से देख लेना सभी प्रकार हितकर होगा।