पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/३९

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२२ तुलसी की जीवन-भूमि श्रम किया, इन्होंने कांधला निवासी शमणदास जी द्वारा सन् ११५८ हिजरी में मामात फे आधार पर 'भकमाल उरपसी' नामक फारसी अंध रघयाया। इन्हीं प्रयों के आधार पर फारसी उर्दू तथा हिंदी में भक्तों के चरित्र-संबंधी अन्य ग्रंथ भी रचे गए। [पोदार अभिनंदन-ग्रंथ, पृष्ठ ३०६ ) हमारी समझ में भवानीदास के 'पारसी' का संकेत है. यही 'भक्तमाल उरवसी जिसका रचना-काल हे सन् ११५८ हि. या सं० १८०२ वि० । अतएव हम सरलता से कह सकते हैं कि भवानीदास ने अपने अद्भुत घरित्र' का निर्माण इसके पश्चात् ही कमी किया । फर किया के अनुसंधान में और आगे न बढ़ हम वहाँ इतना और भी स्पष्ट कह देना चाहते हैं कि 'भवानीदास' को बाचा बेनीमाधव दास के किसी 'गोसाई चरित' का पता नहीं। तो फिर उसका रहस्य क्या ? जो हो, अभी तो हमको इतना ही निवेदन करना है कि वस्तुतः गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन के अध्ययन में इसका महत्व अनुण्ण है। समय और सत्य की चष्टि से भी। भवानीदास रचित इस चरित्र की अवहेलना का परिणाम यह हुआ है कि आज भी 'राजापुर' तथा तुलसी लिखित प्रति मिलीहावाद' की प्रतियाँ तुलसी के हाथ की लिखी हुई कही जा रही हैं। परंतु आश्चर्य की बात तो यह है कि 'चरित्र' को राजापुर का पता नहीं और मलीहाबाद के विपय में उसका कथन है- मल्हियावादी भाट इफ, परम वैष्णव तेउ। तिन बहु विधि पूजा फरी, बहु प्रकार फरि सेउ ।। तब निज पुस्तक दिय तिन्है, रामायन अजहु विराजत तिन सदन, हरि भक्तन सुख दैन । रामैन ।