पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२६७

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२६४ तुलसी की जीवन-भूमि नहीं जा सकता कि वास्तव में महात्मा गोस्वामी तुलसीदास का जीवन क्या था और क्या था उनका निष्कर्ष चरित भी। रहा प्रवाद, लोकवाद अथवा संतमत । सो उनकी भी गति निराली है। जनश्रुति' का स्वरूप अँगरेजी-धारा में पड़कर बिगड़ चुका है । उसको प्रति दिन नया नया रूप भी मिलता जा रहा है । अत्र वह लोकवाणी नहीं कचहरी की गवाही है जो पक्ष-विपक्ष को दृष्टि में रखकर की जाती है और सत्य की अपेक्षा किसी पक्ष पर ही आश्रित होती है। अतः श्राज उसका भी कोई अपना महत्त्व नहीं रह गया। विक्रम की बीसवीं शती किंवा गत शत वर्ष की कथित जन- श्रुतियाँ तो अँगरेजी प्रभाव से मुक्त नहीं। उनकी प्रामाणिकता में संदेह अवश्य है । इसके पहले की जहाँ तक शुद्ध मिलें विचारणीय अवश्य हैं। प्रतीत होता है कि अभी अतीत के अध्ययन में हमें उतना रस नहीं मिलता जितना कि मिलना चाहिए। और, और भी दुःख की बात तो यह है कि हम प्रमादवश अपने अतीत को भी वर्तमान के अनुकूल बनाकर देखने के अभ्यासी हो चले हैं जो निश्चय ही किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं। निदान हमारा अनुरोध. यह है कि हम तुलसीदास के अध्ययन में कुछ अधिक सतर्क, सावधान और सजग होकर लीन हों और किसी जनश्रुति वा कागद-पन्न की पक्की परन किए बिना उसको प्रमाण-कोटि में न लाएँ । हम जानते हैं, मानते हैं, और समय-समय पर जताते भी आ रहे हैं कि तुलसी को लेकर जहाँ-तहाँ, इधर-उधर कैसा जाल बन रहा है। हम कह नहीं सकते कि इसका अंत कब होगा। किंतु समझ सकते हैं कि इसके दिन अब अच्छे नहीं। इसकी खेती में लाभ नहीं । अतः इसमें निरत प्राणी कोई और धंधा ढूंढ निकालें. तो कहीं अच्छा।