पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२३९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुलसी की जीवन-भूमि २३६ . काशी से सरकारी ढंग से फारसी में जो मसाला श्री विल- सन साहिब को मिला उसका उन्होंने जैसा कुछ उपयोग किया उसका कुछ आभास हो गया और यह सरकारी शोध व्यक्त हो गया कि उसको कुछ का कुछ पढ़ा भी गया है। परंतु अभी इसका बोध कहाँ हुआ कि स्वयं 'राजापुर' ने तुलसी के विषय में सरकार से क्या कहा । सो सौभाग्य से श्री रामदत्त जी भारद्वाज की कृपा से वह भी सामने है । देखिए । आप लिखते हैं- १०-स्टेटिकल ढिस्कृपशन एंड हिस्टोरिकल एकाउंट ऑघ द नॉर्थ- वेस्टर्न प्राविंस ऑव इंढिया, एडविन टी. एटकिनसन द्वारा संपादित, प्रथम जिल्द बुंदेलखंड, इलाहाबाद, १८७४ ई० का छपा । पृष्ट ५७२-३ पर लिखा है- ऐसी जमश्रुति है कि अकबर के शासनकाल में तुलसीदास नाम के एक महात्मा जो सोरों, परगना अलीगंज, जिला एटा के निवासी थे, यमुना किनारे उस जंगल में आए जहाँ अब राजापुर स्थित है। उन्होंने वहाँ एक मंदिर बनवाया और स्वयं प्रार्थना ध्यान में प्रवृत्त हो गए। उनको धार्मिकता के कारण बहुत से अनुयायी आकर वहाँ बसने लगे और जनसंख्या बढ़ने पर लोग धर्म और व्यापार दोनों की ओर प्रवृत्त हुए । तुलसीदास के उपदिष्ट नियमों का पालन आज भी राजापुर में होता है। [ नवीन भारत, २० अगस्त १९५२, पृष्ठ ५ 3 फिर तो यही सरकारी पक्ष हो गया और इस 'सोरों' की चर्चा कस कर की गई। परंतु जिस बात पर विशेष विचार नहीं हुआ वह है यह कि क्या जनश्रुति में 'परगना' और 'जिला' का समावेश था अथवा उसका यह पता अपनी ओर से सोरों की सूझ