पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२१०

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तुलसी की जीवन-यात्रा २०७ . केहि फरनी जन जानि के सनमान किया रे । केहि अंघ अवगुन आपनो करि डारि दिया रे ।। खायो खांची माँगि मैं तेरो नाम लिया रे। तेरे बल, बलि, आजु लौं जग जागि जिया रे ।। जो तोसों होती फिरौ मेरो हेतु हिया रे। तो क्यों बदन देखावतो फहि बचन इया रे ।। तो सो ज्ञाननिधान को सर्वज्ञ विया रे? हौं समुझत साँई-द्रोहि की गति छार-छिया रे ॥ तेरे स्वामी राम से, स्वामिनी सिया रे । तहँ तुलसी के कौन को फाफो तकिया रे ॥३३॥ [ विनयपत्रिका] तुलसी हनुमान के सहारे बन गए । उनका शरीर 'झरी से पुष्ट हो गया। परंतु क्या कभी अयोध्या में तुलसी को कहीं कोई 'राम-मंदिर' भी दीख पड़ा ? कैसे कहा राममंदिर जाय ? निवेदन तो उनका यह है जो किसी प्रकार भी प्रत्यक्ष राम मंदिर के पक्ष में नहीं जा सकता। कहते हैं- जानकीनाथ . रघुनाथ रागादितम - तरणि, तारुण्यतनु तेजधामं । सच्चिदानंद आनंदकंदाफर विस्ववित्राम रामाभिरामं ॥ नीलनव - वारिधर सुभग-सुभ - कांतिफर पीतफौसेय - बरबसन - धारी । रहाटक - जटित मुकुट मंडित मौलि भानुसत - सहस' - उद्योतकारी | सवन कुंडल, भाल तिलक, भूरुचिर अति, अरुन अंभोज लोचन विसालं | वक्त्र - आलोक त्रैलोक्य - सोकापह, माररिपु-हृदय-मानस-मरालं ॥ नासिका चार, सुकपोल, द्विज वनश्रुति, अधर बिंबोपमा, मधुर हासं। कंठ दर, चिवुक बर, बचन गंभीरतर, सत्यसंकल्प सुरत्रासनासं ॥ .