पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२०९

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२०६ तुलसी की जीवन-भूमि जयति जय बज्रतनु, दसन, नख, मुखबिकट, चंड-भुजदंड, तसैलपानी । समर-तैलिफयंत्र तिल-तमीचर-निकर परि ढारे सुभट घालि धानी ।। जयति . दसफंठ-घटफरन-धारिदनाद-फदन-कारन, फालनेमि-हंता। अघट-घटना सुघट-विघटन-बिकट, भूमि-पाताल-जल-गगन - गंता || जयति विस्व-विख्यात वानैत, विरुदावली बिदुप बरनत बेद बिमलवानी । दास तुलसी-त्रास-समन सीतारमन-संग सोभित राम राजधानी ॥ २५ ॥ [विनयपत्रिका] राम की राजधानी अयोध्या में ही तुलसी का पालन-पोषण हुआ तो इसमें अनोखा क्या हो गया ? यहीं रुद्रावतार हनुमान भी तो अपने प्रभु के साथ ही विराजमान हनुमत्मसाद हैं ? फिर यहीं सव की कृपा से तुलसी का जीवन निर्वाह क्यों नहीं ? कहते भी हैं और खुलकर जयति सिंहासनासीनसीतारमन निरखि निर्भर-हरप नृत्यकारी । रामसम्राज-सोभा-सहित सर्वदा तुलसिमानस-रामपुर-बिहारी ॥२७॥ [विनयपत्रिका अतएव कोई कारण नहीं कि हम इसी 'रामपुर-बिहारी' हनु- मान की सेवा में तुलसी के जीवन का विकास क्यों न मानें और क्यों इसका श्रेय 'रामराजधानी' को छोड़ कर किसी अन्य को दें? तुलसी का जीवन हनुमत्कृपा से जैसा कुछ वना उसका सार है कुछ भेदभरी भाषा में- समरथ सुवन समीर के रघुबीर पियारे । मो.पर कीवे तोहि जो करि लेहि भिया, रे ।। तेरी महिमा तें चलै चिंचिनी - चियाँ रे। अँधियारे मेरी बार क्यों ? त्रिभुवन उजियारे ॥ .