पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२०६

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तुलसी.की जीवन-यात्रा २०३ तो फिर उक्त साक्षात्कार में 'सीता का अभाव क्यों ? यहाँ की तो स्थिति ही कुछ और है। देखिए- चित्रकूट अति विचित्र, सुंदर बन महिं पवित्र, पावनि पय सरित सफल मल-निफंदिनी। सानुज जहँ वसत राम, लोचनाभिराम, बामभंग बामावर बिस्व-बंदिनी ॥ १॥ चितवत मुनिगन चकोर, बैठे निज ठौर ठौर, . अक्षय अकलंक सरद-चंद - चंदिनी। उदित सदा बन-अकास, मुदित बदत तुलसिदास, जय जय रघुनंदन जय जनकनंदिनी ॥ २ ॥४३॥ इस 'जय जय कार' के भीतर से जो ध्वनि गूंजती है वह है- विरचित तहूँ पर्नसाल, अति विचित्र लषन लाल, निवसत .जहँ नित कृपालु राम जानकी । निजफर रानीवनयन पल्लव-दल रचित · सयन प्यास : परसपर पियूष प्रेम-पान की ।। ३ ।। सिय अँग लिखें धातुराग, सुमननि भूपन-विभाग, तिलक करनि का कहाँ फलानिधान की। माधुरी विलास हास, गावत जस तुलसिदास, बसति हृदय जोरी प्रिय परम प्रान की ||४||४४॥ [गीतावली अयोध्याकांडा फिर इस 'जोरी' का दर्शन चित्रकूट' में क्यों नहीं ? कवि अपडर इसी प्रसंग में इतना और भी कह जाता है काम फौतुफी यहि विधि प्रभुहित कौतुक कीन्ह । रीझि राम रतिनाथहिं ज़ग-विजयी: बर दीन्ह ॥ १७ ॥