पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२०५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०२ तुलसी की जीवन-भूमि मोह-वन फलिमल-पल-पीन जानि जिय, साधु गाय विप्रन के भय सो नेवारिहे। दीन्ही हे रजाद राम पाद सो सहाद लाल, लपन समर्थ धीर हेरि हेरि मारिहे। मंदाकिनी मंजुल फमान यसि, बान जहाँ, वारि-धार धीर धरि गुफर सुधारिहे। चित्रकूट अचल अरि बैव्यो घात मानौं, पातफ के त्रात घोर सावन संहारिहै ।। १४२ ॥ [कवितावली किन्तु क्या यही तुलसी का अभीष्ट 'चित्रकूट' है ? निवेदन है कुछ और भी । 'संहार' से संतोष कहाँ ? चित्रकूट इसी से इसके पहले निमंत्रण' है- जहाँ बन पाचनो मुद्दायनो निहंग मृग, देखि अति लागत अनंद खेत म्नट सो । सीताराम-लखन-निवास, बास मुनिन फो, सिद्ध साधु साधफ सबै त्रिवेफ बूट सो ॥ झरना झरत झारि सीतल पुनीत बारि, मंदाकिनी मंजुल महेस जटाजूट सो।। तुलसी जी राम सौं सनेह साँचो चाहिए ती सेइए सनेह सौ विचित्र चित्रकूट सो ॥ १४१ ॥ [कवितावली ] और साधक से खुली घोपणा- चित्रकूट सब दिन बसत, प्रभु सिव-लपन समेत । रामनाम-जप जापकहिं तुलसी अभिमत देत ॥ ४ ॥ [दोहावली