पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१५९

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तुलसी की जीवन-भूमि हो, पर किया क्या जाय ? इसके बिना किसी प्रकार यह पिनाक टूटता भी तो नहीं ? निवेदन है, नहीं। टुक धीरज धरै तो काम वने । कृपया 'कुल मंगन' का अर्थ 'दरिद्ध' न करें और उसे 'ब्राह्मण कुल' का पर्याय समझ । सो क्यों ? तो अभी इतना मान लें। फिर आगे देखा जायगा । और न भी मानें तो कोई बात नहीं । इतना तो झख मार कर आप को मानना ही होगा कि यह तथ्य है कि- बधावनो बनायो मुनि भयो परिताप पाप जननी जनक को । जी! 'वधावा' का शब्द कान में पड़ा तो माता को तो 'परि- ताप' हुआ और पिता को हुआ 'पाप' । क्यों ? क्यों का समाधान सरल नहीं। इसकी ऊहा में क्या कुछ नहीं बधावा की व्यथा कह दिया गया है, किंतु जो अब तक नहीं कहा गया है वही कदाचित् सत्य है। हमारी अल्प मति में तो यह आता है कि हो न हो यह बधावा किसी अनिष्ट स्थान पर बना है जिसका दुष्परिणाम उक्त 'मंगन- कुल' को भोगना पड़ा है। पिता को पाप' का दंड मिला है और माता को उसका परिताप सहना पड़ा है। रहा बच्चा, सो उसका कुछ न पूछिए । वह तो कहीं से कहीं पहुँच गया न ? सचेत होकर उसी का तो कहना है- मातु पिता जग नाय तज्यो। तो फिर इस 'जग' की व्यंजना क्या ? फिर भी तो वह कहता है इस 'जग' को अलग कर- जननी जनक तज्यो जनमि | किंतु क्या 'जनमि' का प्रयोग वह व्यर्थ ही कर रहा है ? क्यों वहाँ 'जग जाय और यहाँ 'जननी' का प्रयोग इस विषाद से कर रहा है ? कारण कुछ तो होगा हो । कहते हैं-