पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१५४

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तुलसी की जन्म-दशा १४७ जाता, में लाए गए उपहार से अधिक मूल्य की सामग्री अथवा नकद रकम दी जाती है। मूल में पुत्र-जन्म पर भूल-शांति के पूर्व यह नहीं मनाया क्योंकि उन हिंदुओं के घरों में जिनके यहाँ ज्योतिष शास्त्र में विश्वास है, यह एक सामान्य धारणा है कि अभुकमूल में उत्पन्न हुआ पुत्र पिता अथवा माता के जीवन के लिए अनिष्टकारक होता है, और साधारण कोटि के मूल में भी उत्पन्न होने पर कम से कम पिता के धनादि की क्षति करता है। अतएव भूल - शांति होने पर ही यह आनंदोत्सव मनाया जाता है। विशेप कर उस मूल की दशा में जिसे कि अभुक्तमूल कहते हैं, और बिना मूल-शांति हुए तो 'वधावा' सुनना भी वर्जित माना जाता है। अतः एक संभावना तो भूल में जन्म के कारण की हो सकती है, किंतु एक अनन्य संभावना यह भी हो सकती है कि 'मंगन' होने के कारण तुलसीदास के माता-पिता वधावा लाने वाले मान्य संबंधी को कुछ भी भेंट करने में अथवा उसके उपहारों के अनुरूप कुछ भेंट करने में सर्वथा असमर्थ रहे हों। दूसरी संभा- चना अधिक दृढ़ ज्ञात होती हैं, यह स्वतःप्रकट है, क्योंकि का जन्म होने पर आनंदोत्सव शिशु के माता-पिता की अनुमति से ही हो सकते हैं, किंतु शिशु के माता पिता की आर्थिक स्थिति की अपेक्षा करके मान्य संबंधी बधावा लेकर आते ही हैं। [ तुलसीदास, तृ० सं०, पृष्ठ १६४-६ ] डा० माताप्रसाद गुप्त वधावनो बजायो' की स्थिति को सुल- झाते हुए आगे बढ़ते हैं और कुछ और भी डा. गुप्त की चेष्टा --विचार कर एक नवीन जिज्ञासा को जन्म देते हैं। देखिए न, इसी के पश्चात् वहीं आप यह भी लिखते हैं-

३१, 'कवितावली' के उपर्युक दूसरे छंद और . 'विनय-पत्रिका के

उपर्युक्त प्रथम पद में कवि कहता है . में शिशु न,