पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१५

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ट सुकृत संभु तन जन विभूति सम सोहति सब अब दावनि। मंजुल मंगल मोद प्रगट की जनु जननी प्रगटावनि फिए तिलक गुन बसि फरि राखति बहु विधि हिय हुलसायनि । भनहु सुअंजन अंजन दृग को राघो चरित लखावनि 'रामायन' जन बंदत पुनि पुनि सोइ मम ताप युझावनि || X X X वेद को विधान लए पूरन पुरान मत, मानत प्रमान साधु सिद्धि सब ठाई के। प्रेम रस भीने पद परम नवीने फहि दीने है अखेद फषि भेद नहँ ताई के । दया दरसावै बरसावै प्रेम पूरो जल, हियो हुलसावै जौन पाहन के नाई के । खामी के चरित और बापुरो बखान कौन ? वृश्चि.यह बाँटे परी तुलसी गोसांई के । X X निगमागमसार शृंगार सब ग्रंथन को, पियो है पुराण · सबै जैसे वक्ष माई के। रस को शृगार सार संत उर हार लसै, कीन्यौ है अहार ज्ञानी सदा सुखदाई के । सिंधु जग जहाज औ सोपान रामधाम के, दशधा के साज सज्यौ मिलै हेतु सांई के । 'रामचरण रामकथा कीन्ह्यौ है बखान सबै, रामरस घाँटे परयो तुलसी गोसांई के ॥