पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१४२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. नुलसी फी पीचन-भूमि कहता है कि मैं तो तुम्हारे घर का गुलाम हूँ। पाहे मारो, चाहे जिलामो। [वही, परिशिष्ट (फ), पृष्ठ ३१] डा० रामकुमार वर्मा जी ने 'गुलामु घर का' को 'घर का गुलाम' भर कर दिया । इसको समझाने की श्रावश्यकता उनको न पड़ी। उनके सहयोगी डा० माताप्रसाद डा० गुप्त की गुप्त को भी इसमें इसके अतिरिक्त और भ्रान्ति कुछ न सूझा कि यहाँ 'घर' का स्पष्ट निर्देश है । यस सोचना क्या था ? तान ही तो दिया, विना कुछ भी विचार किए कि 'मगहर' परंपरा से 'अवध' के भीतर है, यह कि- यनारस या मगहर कहीं भी कोर जी का जन्म हुआ हो, किंतु न टनका घर अवध में था और न था यही कहीं उनका जन्म स्थान, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता। ठीक है । अपना अपना अध्ययन टहरा । जिस प्राध्यापक की सृष्टि में तुलसी के- तुलसी तिहारो घर जायड है घर को को वही व्यंजना प्राप्त है जो कबीर के फहि फवीर गुलानु घर का को, उससे किसी शब्दशक्ति के गंभीर ज्ञान की आशा ही क्या ? निदान उससे इतना ही नम्र निवेदन कर, कि यह जन इतना तो जानता ही है कि 'घर का गुलाम' मुहावरा है, शेष जनों से अनुरोध करता है कि कृपया वे तुलसी के कहे पर कान दे देखें यह कि तुलसी का मर्म क्या है और वेअपने आराध्य से चाहते क्या हैं और किस नाते से क्यों । सुनिए । 'घरजायउ है घर को' &