पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१३६

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तुलसी का जन्मस्थान १२५ .. फूट पड़ा और पाषाण भी मोम बन कर पिघल उठा निश्चय ही जो कुछ हुआ मुनि-प्रसाद का. फल हुआ। उसे जन्मभूमि का प्रसव समझना भूल है। सो भी राजापुर की स्थिति तो उसी 'वीणा' वाणी में तो यह है- प्रयाग से चित्रकूट के बीच में यमुना-तट से भौरी वगरेही की पहाड़ी पर लालापुर एक गाँव है। वहीं ओहन ( वाल्मीकि) नदी के किनारे पर पहाड़ी के ऊपर वाल्मीकि जी का एक छोटा सा मंदिर है। यह राजापुर से: पूर्व-दक्षिण :कोई दस मील है। यहाँ से चित्रकूट सोलह सत्रह मील के लगभग है। यमुना से यह स्थान दस मील के लगमग है। 'राजापुर' मार्ग में नहीं पड़ता तो राम वहाँ गए क्यों ? प्रश्न उठना स्वाभाविक है। तो समाधान भी वहीं पहले से ही धरा है। देखिए- मेघदूत में भी, कालिदास ने रामगिरि से अलका जाते समय मार्ग में न पड़ने पर भी, मेघ से उज्जयिनी होते जाने का अनुरोध करवा कर- वक्रः पन्या यदपि भवतो प्रस्थितस्योचराया , सौधोत्सङ्गप्रणयविमुखो मास्म भूरुजयिन्याः।- जैसे अपना उज्जयिनी-प्रेम प्रदर्शित किया है वैसे ही गोस्वामी जी के कथा-प्रसंग से युक्त इस वर्णन से इस प्रदेश के प्रति उनका स्वाभाविक अनुराग ही सूचित होता है। जब उनके श्रीराम अपने जन्मस्थल, अयोध्या को बैकुंठ से श्रेष्ठ कह कर उसके प्रति अपना प्रेम प्रकट करते हैं, तब उनका स्वयं अपने जन्म-प्रदेश के प्रति ऐसा करना नितांत उचित और स्वाभाविक है। वीणा, वही, पृष्ठ ५५१-२: पादंटिप्पणी ] परंतु जब तुलसी ने ऐसा किया भी हो। राम ऋजु मार्ग से गए हैं कुछ वक्र' से नहीं। 1 ,