पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१२१

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ताजै। तुलसी की जीवन-भूमि भाई अनन्य मनहिं मुफीरति विमल रघुवर राय की । अति विचित्र चरित्र बानी प्रफर फीनी भाय की। कुटिल फलि के नीव तिन पै अति अनुग्रह तुम फरयो । त्रिविध ताप संताप हिय को दया फरि सत्र को दल्यो ।। ८२॥ जैसे श्री तुलसी तक जंगम राजई। आनंद बन के माँहि प्रगट कवि छाजई। फविता मंजरी सुंदर राम-भ्रमर रमि रहौ तिहि फाजे ॥८६॥ रमि रहे रघुनाथ-अलि है सरस सोधों पाइ। अतिही अमित महिमा तिहारी काही केसे गांइके । तुलसी सु वृदा सखी को निज नाम ते वृदा सखी । दास तुलसी नाम की यह रहसि मैं मन में लखी ।। ८५ ।। यहाँ तक जिस 'तुलसीदास' का वर्णन हुआ है उसके विषय में आपकी जानकारी जो कुछ हो उसको अलग रख देखिए यह कि उसी 'अनन्य' का इसके आगे उल्लास है- फोसल देस उजागर फीनी । सबदिन को अद्भुत रस दीनौ । छिन छिन उमगे प्रेम नबीनौ । उमडि धुमहि शर लाइ रँगीनौ।। रंग की बरखा फरी बहु जीव सन्मुख फरि लिए। जनकनंदिनि-राम-उत्रि मैं भिजे दीने . जन-हिये । वसं निरंतर रहत जिनके नाथ रघुबर जानकी । ते दास तुलसी करहु मो पर दया दंपति-दान की ||८|| रचना कुछ विलक्षण सी है अतः पूरी पढ़ लीजिए तो कदा. चित् इसका मर्म मिले । अत:- सुंदर सिया राम की जोरी । वारों तिहिं पर काम करोरी। दोउमिलिरंगमहल मैं सोहैं। सब सखियन के मन को मोहैं।९०॥ !