पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१२०

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तुलसी का जन्मस्थान १०६ गंगातट पर, और मानस' के निम्नलिखित - सोरठे में आई हुई शब्दावली 'मुक्ति जन्म महि' से- मुक्ति जन्म भहि जानि ज्ञान खानि अघहानि फर! जह बस संभु भवानि सो फासी 'सेइय फसन || [ मानस, किष्किंधा०, प्रारंभ उसमें तत्पुरुष के स्थान पर द्वंद्व समास मानते हुए काशी को तुलसीदास की जन्ममही कहते हैं। किंतु इस प्रसंग में कवितावली' की निम्नलिखित पंक्तियाँ निश्चयात्मक हैं: चेरो राम राय को सुजस सुनि तेरो हर पायं तर आइ रह्यो सुरसरि तीर हौं। जीवे की न लालसा दयालु महादेव मोहिं मालुम है तोहिं मरवेइ को रहत हौं। [कविता०, उचर० १६६, १६७ ] इनसे इस बात का पूर्ण निराकरण हो जाता है कि तुलसीदास का जन्म न केवल काशी में घरन् कदाचित् गंगातटवर्ती किसी भी स्थान में हुआ था। [तुलसीदास, तृ० सं०, पृष्ठ १४१] तो ऐसा स्यात् सरलता से कहा जा सकता है कि 'पांडे जी' के उक्त निष्कर्ष का विरोध स्वयं 'तुलसी' से नहीं होता। कदा- चित् कबीर से हो जाता है। अच्छा । इसकी विवेचना में मग्न होने के पहले यही अनन्य की साखी इतना और भी जान लें कि किसी अनन्य' की वाणी है- • जय जय तुलसीदास गुसाई। सिया राम हग दाई बाई । .रघुबर. की घर कीरति गाई । जै अनन्य तिनके मन भाई ॥४॥