पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/११७

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-- तुलसी की जीवन-भूमि हाँ, तो निवेदन यह करना था कि चलते खाते में कभी इस जन ने भी 'तुलसीदास' लिख वा बोल जन्मस्थान का संकेत दिया था और उसका प्रकाशन भी किसी 'मित्र' की कृपा से किसी शक्ति कार्यालय से हो गया था । उसमें कहीं प्रसंगवश कहा गया था- तुलसीदास ने अपनी जीवनी को समरूप में एक ही घनाक्षरी में इस प्रकार व्यक करने का यत्न किया है. बालपने सूघे मन राम संमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूक टाक हो । परयो लोक-रीति में पुनीत-प्रीति रामराय, मोह बस बैठो तौरि तरफ तराफ हो। खोटे खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनीकुमार सोध्यो राम पानि पाफ हौं । तुलसी गुसाई भयो भोड़े दिन भूलि गयो, ताको फल पावत निदान परिपाफ हौं। [ हनुमान बाहुक, छंद-४०] इसमें 'बालपने', 'लोकरीति' अंजनीकुमार' और 'गुसाई भयो' आदि विशेष विचारणीय है। तुलसी के बालपन का सूकरखेत से जो संबंध रहा है वह मनमानी शोध की कृपा से भाज और भी विकट हो उता है, और पक्ष-विशेष का तो आग्रह ही यही है कि यही 'सूकरखेत' किंवा 'सोरों' तुलसीदास का जन्मस्थान भी है । सोरों की ओर से जो प्रमाण लाए गए थे उनकी प्रामाणिकता तो जाती रही और उनकी साधुता में भी बहुतों को संदेह हो गया। उधर अवध के सूकरखेत को लेकर जो भूल-गोसांई-चरित' यना था वह भी यनावटी ही निकला । उसको भी लोग स्वतः प्रमाण नहीं मानते । तुलसीदास स्वयं इस संबंध में मौन है, अथवा कुछ कहते भी हैं तो यही-