पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/११०

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EE भक्तराज रानापुर के तुलसीदास पक्का प्रमाण अँगरेजी शासन से पहले का भी है कि वस्तुतः गोस्वामी तुलसीदास का निवास: राजापुर था ? हमने वघेल- विभूपण रघुराज सिंह का उल्लेख पहले भी किया था । यहाँ फिर उन्हीं की भाषा में कहना चाहते हैं कि- जौन काल महँ 'तुलसीदासा । रामतत्त्व कीन्ह्यो परकासा । तौने - कालहि रहे. गोसांई । रह्यो न दूसर' तिनकी नाई। तैसहि अवहुँ गुणहु यहि काला | मक्त सरिस नहिं भक्त विशाला । 'अबहुँ' अर्थात् 'श्री रामरसिकावली' या भक्तमाला'की रचना (सं० १९२१ वि०) के समय । और 'भक्त' का संकेत है यह कि भक्तराज को अब चरित, वरौँ विमल विशाल । जाको छीदास अस, नाम अहैं यहि काल ||१|| राजापुर यमुना तट प्रामा | तहाँ जन्म लीन्यो मतिधामा । [भक्तमाला, पृष्ठ १०६६] स्मरण रहे. इसी रघुराज सिंह ने तुलसीदास के विषय में कहा था- राजापुर यमुना के तीरा । तुलसी तहाँ बसै भतिधीरा । क्यों ? यसै क्यों? सो राजा रघुराज सिंह की गणना यद्यपि चरित्री धारा के भीतर ही होगी तथापि यह भूलकर भी भूलना न होगा कि वास्तव में राजा साहिव साहिवी प्रभाव के प्राणी हैं । तो भी यह तो कहने की बात हुई। समझने की बात यह है कि इन्हीं. राजा साहिब के कथनानुसार राजापुर में- एक समय नागा बहु आए । भक्तराज तिन काहुँ टिकाए। सराजाम सब भाँति समेटे. मिली न लकरी एकहु.जेटे ।