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तिलिस्माती मुँदरी


दौड़ाया और रानी और बब्बू भाग गये होते लेकिन सिपह-सालार ने कुछ सवारों को उनका पीछा करने का हुक्म दिया। सवार बहुत जल्द उनके पास पहुंच गये और तीरन्दाज़ों ने फ़ीलवान की तरफ़ तीर खींच कर उससे कहा कि "रुक जाओ, वरना तीर तुम पर छोड़ दिये जायंगे"। फ़ीलवान ने देखा कि भागना फुजूल होगा इस लिये हाथी को रोक दिया। उसके बाद रिसाला वहां पर आ पहुंचा और बब्बू और रानी दोनों कैद कर लिये गये।

महाराज तब लौंडी गुलामों की तरफ़ मुखातिब हो कर पूछने लगे “मेरी प्यारी दोहती कहां है?" उसी वक्त राजा की लड़की उनके पैरों पर आकर गिर पड़ी। उन्होंने उसे उठा कर छाती से लगा लिया और बोसे लिये, फिर उसे अपने साथ हाथी पर सवार करा कर ले जाने की तैयारी की, लेकिन लड़की ने अर्ज़ की कि "मेरी मुसीबत की साथन और दोस्त दयादेई को भी ले चलिये" पस वह भी बैठा ली गई और कश्मीर के बुड्ढे महाराज अपनी फ़ौज के साथ अपनी पुरानी राजधानी पर क़ाबिज होने के लिए आगे बढ़े। तोता राजा की लड़की के बाजू पर बैठा हुआ शहर के लोगों की जयकार पर बड़ी खूबी के साथ सिर झुकाता जाता था, कौए दोनों खुशी से भरे हुए ऊपर उड़ते चलते थे। वह राज-महल के बाग़ में अपने पुराने बसेरे को चले गये। और उकाबों का गिरोह, अपनो ड्यूटी अदा करके अपने पहाड़ी मुक़ामो को रवाना हुआ।

राजा की लड़की ने महलों में पहुंचते ही पहला काम जो किया यह था कि अपने नाना से अर्ज़ की कि दयादेई की मां और बाप को कि जिन्हों ने उस के साथ ऐसा नेकी का सलूक किया था लाहौर से बुलवा लिया जाय। पस यह बुलवा