कौए से उसने कहा कि वह अभी खंडहर ही में रहे और जब फ़ौज लाहौर से रवाना हो उसके साथ साथ उड़े। दोनों कौओं को हुक्म देने के बाद तोता राजा की लड़की के पास वापस आया।
दूसरे रोज़ सुबह को सब लौंडी गुलाम कश्मीरी लशकर को भेज दिये गये और वहां पर सिपहसालार के सपुर्द कर दिये गये और फ़ौज का फ़ौरन कूच हो गया। वह दोनों लड़कियां एक बांसों की खुली डोली में साथ बैठाई गई। तोता उनके साथ रहा, लेकिन अंगूठी के न होने से राजा की लड़की से अब वह बात नहीं कर सकता था, और इसका दोनों का बड़ा अफ़सोस था।
इस तरह वह कई दिनों तक सफ़र करते रहे ओर अख़ीर को कश्मीर से एक रोज़ के रास्ते पर पहुंचे। यहां फ़ौज ठहर गई और रानी मय अपने तमाम दरबारियों के, अपनी फ़तहयाब फ़ौज को लेने के लिये और यह देखने के लिये कि लूट में क्या क्या माल आया है, आई। फ़ौज बड़ी सज धज के साथ खड़ी की गई और रुपये, अशर्फियां, सोने चांदी के जेवर, जवाहिरात, कीमती रेशमी कपड़े, शाल दुशाले, खूबसूरत घोड़े और लौंडी गुलाम जो लूट में आये थे सिपह-सालार के ख़ेमे के सामने नुमाइश के वास्ते बड़े ठाट बाट से सजाये गये। यह नुमाइश बड़ी शानदार थी। रानी एक हाथी पर जिस पर बेशकीमती सुनहली झूल पड़ी हुई थी एक सोने के हौदे में बैठी हुई थी, उसके दरबारी और मुसाहिब उसके पीछे घोड़ों पर सवार थे, उनके पोछे पलटनों की कतारें थीं। जब वह उस जगह के सामने पहुंची जहां लौंडी और गुलाम