लीफ़ उठाने के बाइस निहायत थक गई थी, फ़र्श पर ग़श में आकर गिर पड़ी। कोतवाल की बीबी ने उसे चारपाई पर लिटा दिया और जब वह होश में आई उसने थोड़ा खाने को मांगा जो कि उसको दिया गया, उस के बाद वह सो गई और सुबह को खूब दिन निकल आने पर उठी। खाने के बाद कोतवाल की बीबी उसे अपने शौहर के पास ले गई और उससे उसके ऊंचे इरादे का बयान किया
जिसकी कि कोतवाल ने बड़ी तारीफ़ की। तब उसकी बीबी से बहुत रंज और अफ़सोस के साथ रुख़सत होकर राजा की लड़की कोतवाल के हमराह गुलामों के कैदखाने को रवाना हुई। वहां वह दोनों फ़ौरन गुलामों के दारोगा के पास पहुंचाये गये और कोतवाल उस से अपने आने की ग़रज़ बयान करने लगा। लेकिन उसी वक्त राजा का वज़ीर जो गुलामों का मुआइना करने को आया था वहां आ पहुंचा और दारोगा ने कोतवाल से कहा कि "जो कुछ अर्ज़ करना हो, वज़ीर से करो"। वज़ीर उसका काई दोस्त न था, उसने जब सब हाल सुन लिया, कहा कि दयादेई को छोड़ देना बिलकुल नामुकिन है, क्योंकि ख़िराज इकट्ठा करने में इतनी मुशकिल पड़ रही है कि राजा ने हुक्म दिया है कि लौंडी और गुलाम
बनाने लायक जो कोई लड़कियां और लड़के मिलें सब को पकड़ लेना चाहिये, इस लिए दयादेई और यह लड़की दोनों को लौंडियों में शामिल होना पड़ेगा। कोतवाल ने बहुत मिन्नत की और धमकियां भी दी और ग़म और गुस्से में अपनी डाढ़ी नोच डाली लेकिन वजीर पर कुछ असर न हुआ। तब कोतवाल वहां से सीधा राजा के महलों को गया और फ़ार्यद की कि उसकी बेटी को वज़ीर ने लौंडियों में दाख़िल कर दिया है, लेकिन राजा ने जवाब दिया कि क्या
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तिलिस्माती मुँदरी