पृष्ठ:तिलस्माती मुँदरी.djvu/६२

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५९
तिलिस्माती मुँदरी


दयादेई और दयादेई की मां की इस मुसीबत का बाइस वही थी। मगर तोते ने उससे कहा-"अच्छा, मेरी प्यारी, अगर तू इस तरह अपने को ज़ाया करने पर आमादा है, तो मैं भी तेरे साथ चलता हूं, मगर मुझे कौओं से कह आने दे कि वह दोनों इसी खंडहर के आस पास रहें ताकि अगर जरूरत पड़े तो मिल सके। कौओं को इस तरह हिदायत करके तोता लड़की के लबादे के अन्दर आ दबका और वह उसी वक्त वहां से चल दी और नज़दीक की गली के रास्ते सीधी कोतवाल के मकान के दरवाजे पर पहुंची और जोर से उले खटखटाने लगी-कुछ देर बाद एक बुढ़िया लौंडी ने खिड़की से अपना सिर निकाल कर पूछा-"कौन है?"-"मैं हूं चांदनी, मुझे भीतर आने दो"-यह जवाब पाकर लौंडी ने दरवाज़ा खोल दिया और राजा की लड़की के कहने से उसे ज़नाने कमरे में ले गई। वह लौंडी दयादेई की दाई थी, राजा की लड़की को देखते ही वह फूट फूट कर रोने लगी और दयादेई पर जो मुसीबत गुज़री थी सुनाने लगी, लेकिन राजा की लड़की ने कहा कि "मुझको सब मालूम है, लेकिन मेरे सबब से वह इस बिपत को न भोगने पावेगी, मैं अपने को पकड़वाने के लिये आई हूं"-और कहा कि "मुझे दयादेई की मां के पास ले चल"-जब उसके पास पहुंची उस के सीने से लिपट गई और बोली कि "मैं अपने को पकड़वाने और दयादेई को छुड़वाने के लिए आई हूं"। कोतवाल की बीबी उसके बोसे लेने लगी और उसे गले से लगा के रोने लगी, लेकिन उसने राजा की लड़की को अपने इरादे से रोका नहीं, क्योंकि दूसरी कोई सूरत उसकी लड़की के रिहाई पाने की न थी, लेकिन उस वक्त राजा की लड़की कि जिसे दिन भर कुछ खाने को नहीं मिला था और जो कि मिहनत और तक-